SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लब्धिसार ५६ ] [ गाथा ६५ स्थिति पड़ी । ( क्योकि आबाधामे निषेक रचना नही होती नियम ४ ) वन्धावली ( ३ समय) के बीतने पर प्रथम निषेक (जिसकी कि बन्ध के समय शक्तिस्थिति तो ३५ समय तथा व्यक्तस्थिति १३ समय थी ( ज. घ. ७/२५६ ) की व्यक्तस्थिति १० समय ही रहेगी । तब उस प्रथम निषेक का उत्कर्षरण होने पर (नियम न० ३ से) उससमय बध्यमान उत्कृष्ट प्रबद्ध की उत्कृष्ट प्रावाधा १२ के बाद १३ वे निषेक मे भी निक्षेपण सम्भव नही होगा; क्योकि विवक्षित उत्कृष्यमाण १० समयस्थितिक प्रथम निषेके से ३ समय स्थितिरूप अतिस्थापनावली छोडकर बादमे ही निक्षेप सम्भव होगा, अतः निक्षेप वध्यमान समयप्रबद्ध के १४ वे समय से होगा और यही चौदहवाँ समय उससमय बध्यमानप्रवद्ध का द्वितीयनिक का है ( क्योकि आबाधा के बाद तेरहवा समयं प्रथम निषेक का तथा चौदहवा समय द्वितीय निषेक का है । अतः उत्कर्षण के समय वध्यमान प्रबद्ध के द्वितीयनिषेक से उत्कर्षित द्रव्य का - निक्षेपण होगा तथा बध्यमान वर्तमानप्रबद्ध की ग्रन्तिमग्रावली मे निक्षेप नहीं करता, क्योकि उन कर्मपरमाणुओं की उनमे निक्षेपकरने योग्य शक्ति- स्थिति नही पाई जाती । ( नियम ७ देखो ) ( जध. ७।२४९) शेष कथन सुगम है । इसप्रकार द्वितीय निषेक से लगाकर सर्वत्र उत्कर्षितद्रव्य का निक्षेप होता है, मात्र चरमावली मे नही होता । चित्र - उत्कृष्ट स्थितिक समय प्रद्ध १४८ समय स्थितिक अन्तिम निषेक बन्धावली बीतने के बाद भगरतय वि १३ सम्म पत्रपति ५२ समय जलाधा ४४ समय चरम निषेक उत्कर्षित होने वाले निषेक के उत्कर्षण के समय बद्ध समय प्रबद्ध, - समयस्थितिक द्वि नि 1१० समयस्थितिक प्र नि. ए समय आबाधां 3 ४८ समयस्थितिक चश्मनिषेक ४६ समय स्थितिक निषेक ४७ ४५ समयस्थितिक निर्बंक शिक्षण का प्रभाव म १४ स्थितिक निषेक यानी द्वितीय बिना मध्य तक । यानी चरमआवल) (४६ से ४८) (तक के ३ समय) 1 of 'सम्यस्थितिक द्वि निर्मिक १३ समयस्थिति प्र. निषेक १२ समय ऊबाधा (49 9293) नोट यहां अतिस्थापनावली-प्रथमनिषेक एवं १ समयकम वली प्रमाण आवाखा
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy