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________________ लब्धिसार [ गाथो ६१ ५० ] अभी अभाव नही हुआ है । उस उत्कृष्टस्थितिकाडकघातके अन्तिमसमयकी चरमफालि मे जो अनस्थिति अर्थात् चरमनिषेकका द्रव्य होता है उसकी प्रतिस्थापना एकसमयकम काडकप्रमाण होती है, क्योकि उस अन्तिमसमयकी फालीमे स्थितिकाडकघातके भीतर आई हुई सभी स्थितियोका व्याघातके कारण घात होता है। इसलिये चरमस्थितिकी एकसमयकम उत्कृष्टकाडकप्रमाण (उत्कृष्टस्थितिमे से अन्तःकोडाकोडीसागर कम कर देने पर शेषस्थिति उत्कृष्टकांडक है) उत्कृष्टअतिस्थापना होती है । शंका-इस प्रतिस्थापनाको एकसमयकम क्यो कहा ? समाधान-क्योकि अपकर्षणको प्राप्त होनेवाली अग्रस्थिति (अन्तिमनिषेक) प्रतिस्थापनासे बहिर्भूत होती है । यह एकसमयकम उत्कृष्टस्थितिकाडकप्रमाण उत्कृष्टअतिस्थापना स्थितिकाडकविषयक व्याघातके होनेपर होती है, अन्यत्र नही होती' । अब सातगाथाओंमें उत्कर्षणका कथन करते हैंसत्तग्गठिदिबंधो भादित्थियुक्कड्डणे जहणणेण । श्रावलिअसंखभागं तेत्तियमेत्तेव णिक्खियदि ॥६१॥ अर्थ-बन्ध होनेपर सत्त्वकर्मकी अग्रस्थिति ( अन्तिमस्थितिके द्रव्य ) का उत्कर्पण होता है उस उत्कर्षणकी अतिस्थापना ( आदिस्थिति ) जघन्यसे आवलिके असख्यातवेभाग होती है और जघन्यनिक्षेप भी उतना ही होता है । विशेषार्थ-नवीन अधिकस्थितिबन्धके सम्बन्धसे पूर्वकी स्थितिमेसे कर्मपरमाणुओं (प्रदेशो) की स्थितिका बढ़ाना उत्कर्षण है । उसके दो भेद है—निर्व्या. घातविपयक और व्याघातविषयक । जहां प्रावलिके असंख्यातवेभागादि निक्षेपसे सबध रखनेवाली एकावलिप्रमाण अतिस्थापनाका प्रतिघात नही होता वहां निर्व्याघातविषयक प्रतिस्थापना होती है, क्योकि उसप्रकारके निक्षेपके साथ प्राप्त हुई एकावलिप्रमाण अतिस्थापनाका प्रतिघात यहा व्याघातरूपसे विवक्षित है। १ ज. ध पु.८ पृ २४८ से २५०। २ अयं विशेषो यद् उदयावलिपरमाणुनामुत्कर्षणं कदापि न सम्भवति उदयावलि बहि स्थितेष्वपि । ३. ज. घ पु.७ पृ. २४३ । केपाचिदेव उत्कर्पण सम्भवति न सर्वेषाम् (प. पु. ७ पृ. २४३)
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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