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[[ममा ५६
17 लब्धिसार
शंका,-विशेषका प्रमाण कितना है ? .
. . . , .. समाधान-अनिवृत्तिकरणकालके सख्यातवेभाग विशेषका प्रमाण है, ७
: नोट-जिन निषेकोमे गुणाकार क्रमसे अपकर्षितद्रव्य निक्षेपित किया जाता है अर्थात् दिया जाता है उन निषेकोका-नाम गुरणश्रेणिनिक्षेप है उन निषेकोंकी सख्याका प्रमाण गुणश्रेणीमायाम है। :
अथानन्तर निक्षेप व अतिस्थापना स्वरूप-भेद-प्रमाणादिका कथन करते हैं- णिक्खेवमंदित्थावर्णमवरं समऊंगावलितिभागं। '
तेणणावलिमेत्तं विदियावलियादिमणिसेगे॥५६॥ . . अर्थ-द्वितीयावलिका आदिनिषेक अर्थात् उदयावलिसे अनन्तंर उपरिमनिषेक मे से द्रव्य अपकर्षितकरके नीचे उदयावलिमे देता है तब एकसमयकम आवलिका त्रिभाग तो जघन्यनिक्षेप है तथा प्रावलिके शेषनिषेक जघन्यप्रतिस्थापना है । .
विशेषार्थ-जो स्थिति अभी उदयावलिके अन्तिमसमयमे प्रविष्ट नही हुई है, किन्तु अनन्तर अगले समयमें प्रविष्ट होनेवाली है उसके निक्षेप और प्रतिस्थापना सर्वजघन्य है । स्पष्टीकरण इसप्रकार है "उस स्थितिका अपकर्पण करके, उदयसमयसे लेकर आवलिके तृतीयभार्गतक" उसका निक्षेप करता है और भागप्रमाण "ऊपरके हिस्सेको प्रतिस्थापनारूपसे स्थापित करता है। इसलिए प्रावलिका तृतीयभाग उस अपकर्षितस्थितिके निक्षेपका विषय है और प्रावलिका ई भाग अतिस्थापना है।
शंका-प्रावलिकी परिगणना कृतयुग्म सख्यामे की गई अत' उसका तृतीयभाग कैसे ग्रहण किया जाता है ? " " -
समाधान-प्रोवलिका प्रमाण जघन्ययुक्तासंख्यात है, अत पावलिकी परिगणना कृतयुग्मसख्यामे की गई है, (जो सख्या ४ से पूर्णरूपेण विभाजित हो जोवें वह 'कृतयुग्म' सख्या है ) इसलिए उसका शुद्ध तीसराभाग नही हो सकता अत' प्रावलिसे एककम करके उसका तृतीयभाग ग्रहण करना चाहिए। अब यहा आवलिमे से जो १. ज प.पु ८ प २४३-४४ ।
२ प पु १२ प्रस्तावना पृ ३, ध पु १४ पृ १४७, ध. पु. १२ पृ १३४, भगवतीसूत्र लो प्र
१२।७६, ध पु. ३ प २४६, ध. पु १० प्रस्तावना पृ. ३, ध पु १० मूल पृ. २२-२३ ।