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________________ गाथा ४६-४९ ] लब्धिसार पढमे चरिमे समये पढमं चरिमं च खंडमसरित्थं । सेसा सरिसा सव्वे अव्वंकादि अंतगया ॥ ४६ ॥ चरि सव्वे खंडा दुरिमसमत्ति अवरखंडाए । सरिसखंडागोली अधापवत्तम्हि करणहि ॥ ४७ ॥ पढमे करणे भवरा णिव्वग्गणसमयमेत्तगा तत्तो । हिदिणा वरमवरं तो वरती अतगुणिंदकमा ॥ ४८ ॥ पढमे करणे पढमा उड्डगढीय चरिमसमयस्स । तिरियगखंडापोली असरित्थाांतगुणिदकमा ॥४६॥ १. अर्थ - आदिकरण (अध प्रवृत्त कररण) के कालमे प्रतिसमय अधिकक्रम लिए हुए सख्यात लोकप्रमाण परिणाम होते है । विशेष ( चय) को प्राप्त करनेके लिए अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रतिभाग है । उस अध प्रवृत्तकररणकालके ( समयोके ) संख्यातवेभागप्रमाण अनुकृष्टिरचनाका आयाम है और जितना वह आयाम है उतने समयोका एकनिर्वर्गरणाकाण्डक होता है ।' निर्वर्गरणाकाण्डकके समान प्रतिसमयके परिणामोके क्रमशः खण्ड होते है, वे खण्ड अधिक मवाले होते है । यहा विशेषको प्राप्त करनेका प्रतिभाग अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । प्रत्येकखण्ड मे असख्यात लोक प्रमाण परिणाम है । प्रत्येकखण्ड षट्स्थानपतितवृद्धि असख्यातलोकबार होती है । एक- एक विशेष ( चय ) मे भी षट्स्थानपतितवृद्धि असख्यात लोकबार होती है । प्रथमसमयका प्रथमखण्ड और चरमसमयका अन्तिंमखण्ड ये विसदृश और शेषखण्ड सदृश है । सर्वखण्डोका ग्रादि 'भ्रष्टा' है और अन्त 'उर्वाक' है । चरमसमयके सर्वखण्ड और प्रथमसमयसे लेकर द्विचरमसमयपर्यन्तका सर्वप्रथमखण्ड, यह प्रध प्रवृत्तकरणमे असदृशखण्डोकी पंक्ति है । प्रथम ( ध प्रवृत्त ) करण निर्वर्गरणाकाण्डकप्रमाण समयोमे प्रत्येकसमय के प्रथमखण्ड के जघन्यपरिणाम ऊपर-ऊपर अनन्तगुणे क्रमसे है । निर्वर्गरणाकाण्डकके चरमसमयसम्बन्वी जघन्यपरिणामसे प्रथमसमयका उत्कृष्टपरिणाम अनन्तगुरणा है, उससे द्वितीय निर्वर्गगाकाण्डकके प्रथमसमयके प्रथमखण्डका जघन्यपरिणाम अनन्तगुरंगा है इसप्रकार जघन्यसे उत्कृष्ट और उससे जघन्य सर्पकी चालवत्' अनन्तगुणक्रमसे है । प्रथम ( प्रवृत्त ) [ ३३ क. पा सुत्त पृ. ६२६ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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