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गाथा १-५]
क्षपणासार शंका:-क्षपकके मनोयोग तो सम्भव है, क्योंकि छद्मस्थके ध्यानावस्थामें मनकी एकाग्रता होती है, किन्तु चारों वचनयोग कैसे सम्भव है, क्योंकि ध्यानावस्था में समस्त बहिरङ्गव्यापार रुक जाता है, जिसका वचनप्रवृत्तिके साथ विरोध है ।
समाधानः-यह दोष नहीं है, क्योकि ध्यानयुक्तके भी अवक्तव्यरूपसे वचनयोगकी प्रवृत्तिके विप्रतिषेधका अभाव है। इसीप्रकार औदारिककाययोग भी सम्भव है, क्योंकि ध्यानावस्थामें उसके सम्बन्धसे जीवप्रदेशोंका परिस्पदन संभव है ।
कषाय कोनसी होती है ? क्रोध-मान-माया और लोभ इन चारकषायरूप परिणामोंमें से किसी एक कषायरूप प्रवृत्तिका विरोध नहीं है ।
शंका:-कषायरूप परिणाम वर्धमान होते हैं या हीयमान होते हैं ?
समाधानः-कषायपरिणाम हीन होते हैं, वर्धमान नही, क्योकि विशुद्धपरिणामोंका वर्धमानकषायपरिणामोसे विरुद्ध स्वभाव है।
उपयोग कौनसा होता है ? अर्थात् अर्थग्रहणरूप आत्मपरिणाम उपयोग है, वह साकार व अनाकारके भेदसे दो प्रकारका है । मति-श्रुत-अवधि-मनःपर्यय और केवल इन पांचज्ञानरूप व कुमति-कुश्रुत-विभङ्ग इन तीन कुज्ञानरूप इसप्रकार आठभेदवाला साकारोपयोग और चक्षु-अचक्षु-अवधि-केवलरूप चार प्रकारका अनाकार उपयोग होता है । क्षपक श्रेणि चढनेवाले के एक श्रुतज्ञानोपयोग होता है, क्योंकि पृथक्त्ववितर्कवीचार सज्ञक प्रथम शुक्लध्यानके अभिमुख चौदह या दस अथवा नौ पूर्वधारीके श्रुतज्ञानोपयोग अवश्यभावी है । द्वितीय उपदेशानुसार श्रुतज्ञान, मतिज्ञान, चक्षुदर्शन या अचक्षुदर्शन इन चारमे से कोई एक उपयोग होता है, क्योकि वह अन्तरीय (अन्य) नही है, मात्र कारणरूप है मतिज्ञानके होनेपर चक्षुदर्शन व अचक्षुदर्शनके होनेमे भी कोई विरोध नही आता, क्योंकि चक्षुदर्शन व अचक्षुदर्शनके बिना मतिज्ञान नही हो सकता ।
शंका:-मतिज्ञान-श्रुतज्ञान-चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन इन चार उपयोगोके समान अवधिज्ञान- मनःपर्ययज्ञान और अवधिदर्शन भी क्यों नही होते ? ।
___ समाधानः-ऐसी आशंका नही करनी चाहिए, क्योकि इस सूत्रके द्वारा उनका विरोध कर दिया गया है तथा एकाग्रचितानिरोध लक्षणरूप ध्यानसे अवधिज्ञानादिका विरुद्ध स्वभाव है।
१. जयघवल मूल पृ० १६४१-१९४२ ।