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________________ ( २० ) शब्द पृष्ठ पूर्वानुपूर्वी प्रदेश ४६ परिभाषा धवल ११७४ कहा भी है-विलोमेण परुवणा पच्छाणुपुब्बी णाम । धवल ९।१३५ अर्थात् विलोम क्रम से प्ररूपणा करना पश्चादानुपूर्वी है । (ध ९।१३५ प्रथम पेरा ) जयघवल पुस्तक १ पृ २५ प्रकरण २२ ( प्रथम पेरा) मे भी कहा है कि-उस पदार्थ की विलोम क्रमसे अर्थात् अन्त से लेकर आदि तक गणना करना पश्चादानुपूर्वी है। उद्दिष्ट क्रम से अर्थाधिकार की प्ररूपणा का नाम पूर्वानुपूर्वी है । (घवल ९।१३५ प्रथम पेरा ।) जो पदार्थ जिस क्रम से सूत्रकार के द्वारा स्थापित किया गया हो, अथवा जो पदार्थ जिस क्रम से उत्पन्न हुआ हो उसकी उसी क्रम से गणना करना पूर्वानुपूर्वी है । जयघवल १।२५। जो वस्तु का विवेचन मूल से परिपाटी द्वारा किया जाता है उसे पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । उसका उदाहरण इस प्रकार है'ऋषभनाथ की वन्दना करता हू, अजितनाथ की वन्दना करता हूँ' इत्यादि क्रम से ऋषभनाथ को प्रादि लेकर महावीरस्वामी पर्यन्त क्रम वार वन्दना करना, सो वदना सम्वन्धी पूर्वानुपूर्वी उपक्रम है । धवल ११७४ (i) जितने क्षेत्र मे एक परमाणु रहता है उसका नाम प्रदेश है । 2 स. सि. ५-८; द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र १४०, प्र. सा. ( जय.) २,४५; नियमसार पृ० ३५ अन्य विवक्षा मे--स्कन्ध के आधे के प्राधे भाग को या देश के प्राधे भाग को प्रदेश कहते हैं । 2 त० सा० ३१५७; वसुनन्दिश्राव० १७ गो० जी०, जी० प्र० ६०४, पं० का० ७५; मूला० ५-३४ ( वट्टकेराचार्य ), भाव स० ३०४, गो० जी० ६.४ प्रादि । (u) परन्तु यहा कर्म शास्त्र मे, प्रकृत मे प्रदेश शब्द से, परमाणुरूप द्रव्य जानना चाहिए। लब्धिसार-क्षपणासार मे जहा प्रदेश शब्द आया है, वहा प्रायः "कर्मपरमाणु" अर्थ मे ही प्राया है। प्रदेश = कर्मपरमाणु । ( देखो क्षपणासार गा० ४४१ पृ० ४६ आदि पर आगत प्रदेश शब्द ] (1) कार्य के विनाश का नाम प्रध्वसाभाव है। धवल १५।२६ (1) दही मे जो दूध का अभाव है वह प्रध्वसाभाव स्वरूप है । जै० ल० ३७६५ (ii) प्रध्वस अर्थात् कार्य का विघटन नामक धर्म । के नोट-ये दोनो (1) व (ii) परिभाषाए परिज्ञान मात्र के लिए दी गई है । प्रध्वसाभाव १५४
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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