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________________ लक्षणावली क्षपणासार परिभाषा शब्द ग्रन्थ में जहां प्राया वह पृष्ठ अघस्तन कृष्टि ११५ अधःप्रवृत्त सक्रम भागहार अनुत्पादानुच्छेद २३६-६० अनुभागकाण्डक काल अनुसमयापवर्तन १६७, १३४ प्रथम, द्वितीय आदि कृष्टियो को अधस्तन कृष्टि कहते हैं । पल्य के अर्द्धच्छेद के असख्यातवे भाग प्रमाण अधःप्रवृत्त सक्रम भागहार होता है । जहा जिसका बन्ध सम्भव हो, ऐसी जो विवक्षित प्रकृति, उसके परमाणुओ को अधःप्रवृत्त सक्रम भागहार का भाग देने पर एक भाग मात्र परमाणु अन्य प्रकृति रूप हो जाते हैं, यह अधःप्रवृत्तसक्रम कहलाता है । देखो-उत्पादानुच्छेद की परिभाषा मे। एक अनुभागकाण्डक का घात अन्तर्मुहूर्त काल मे पूरा होता है, इस काल का नाम अनुभागकाण्डकोत्कीरण काल या अनुभागकाण्डककाल है। जहा प्रति समय अनन्त गुणे क्रम से अनुभाग घटाया जाय वहा अनुसमयापवर्तन कहलाता है । पूर्व समय मे जो अनुभाग था उसको अनन्त का भाग देने पर बहुभाग का नाश करके एक भाग मात्र, अनुभाग अवशेष रखता है। ऐसे समय-समय अनुभाग का घटाना हुआ, अतः इसका नाम अनुसमयापवर्तन है। कहा भी है-उत्कीरण काल के बिना एक समय द्वारा ही जो घात होता है वह अनुसमयापवर्तना है । (घवला १२/३२) अर्थात् प्रतिसमय कुल अनुभाग के अनन्त बहुभाग का अभाव करना अनुसमयापवर्तना है। शका-अनुसमयापवर्तना को अनुभाग काण्डकघात क्यो नही कहते ? समाधान नहीं कहते, क्योकि प्रारम्भ किये गये प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त काल के द्वारा जो घात निष्पन्न होता है वह अनुभागकाण्डकघात है; परन्तु उत्कीरण काल के बिना एक समय द्वारा ही जो घात होता है वह अनुसमयापवर्तना है। दूसरे, अनुसमयापवर्तना मे नियम से अनन्तवहुभाग नष्ट होता है, परन्तु अनुभागकाण्डकघात मे यह नियम नहीं है, क्योकि छह प्रकार की हानि द्वारा काण्डकघात की उपलब्धि होती है । धवल १२ पृष्ठ ३२ अन्तरकृष्टि 88 एक-एक सगह कृष्टि मे अनन्तर कृष्टि मनन्त होती हैं। क्योकि अनन्तकृष्टि के
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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