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________________ क्षपणासारचूलिका [ गाथा १०-११ गाथा हमें जिस अनुभाग- अल्पबहुत्वका कथन पूर्वानुपूर्वी क्रम से किया है चूर्णि - सूत्रकारने उसको पश्चातानुपूर्वी क्रमसे कहा है । चूर्णिसूत्रो मे कथन इसप्रकार हैविवक्षितसमयके अनन्तरकालमे होनेवाला अनुभागबन्ध अल्प है । इस अनुभागबन्धसे उसी समय होनेवाला उदय अनन्तगुणा है, इसका कारण गाथा न० ७ में कहा गया है । इसके अनन्तर समयवर्ती अनुभागोदय से विवक्षित समय में अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है, क्योकि प्रतिसमय अनन्तगुणी बढ़नेवाली विशुद्धि के माहात्म्यसे विवक्षित समयकी विशुद्धि से अनन्तरसमयकी विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । इसलिए पूर्व- पूर्व समयके उदयसे उत्तरोत्तर समयका बन्ध भी अनन्तगुणा हीन होता है अथवा उत्तरोत्तर समयके उदय से पूर्व पूर्व समयका बन्ध अनन्तगुणा होता है यह सब विशुद्धिका साहात्म्य है' । मोहनीयकर्मके अतिरिक्त अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके अन्तसमय में शेष कर्मोका स्थितिबन्ध -- २३६ ] र बादरागे गामा- गोदाणि वेदरणीयं च । वसंत बंधदि दिवसरतो य जं सेसे ॥१०॥ अर्थ - बादरसाम्परायके चरमसमय में नाम - गोत्र वेदनीय इन तीन अघातिया - कर्मो का स्थितिबन्ध अन्तः वर्षप्रमाण और शेष तीन घातिया कर्मोका स्थितिबन्ध अन्त:दिवस प्रमाण होता है । विशेषार्थ - चरमसमयवर्ती बादरसाम्परायके नाम, गोत्र व वेदनीयकर्मो का स्थितिबन्ध कुछकम एक वर्ष प्रमाण होता है और तीन घातिया कर्मो का पृथक्त्वमुहूर्तप्रमाण स्थितिबन्ध अन्तःवर्षप्रमाण और तीन घातिया कर्मो का पृथक्त्वमुहूर्त प्रमाण स्थितिबन्ध होता है, किन्तु मोहनीयकर्मका अन्तर्मुहूर्तमात्र होता है । १ २ * जं चात्रि संकुहंतो खरेदि किहिं प्रबंधगो तिस्से | सुकुम्हि संपराए अबंधगो बंध गियराणं ॥ ११ ॥ क० पा० सुत्त पृष्ठ ७७० । क० पा० सुत्त पृष्ठ ८७४ गा० २०६ व पृष्ठ ६६६ गा० १०, ज. ध. मूल पृष्ठ २२२१ व २२७४ ॥ जयधवल मूल पृष्ठ २२२२ ३ ४. क० पा० सुत्त पृष्ठ ८८१ गा० २१७ व पृष्ठ ६६६ गा० ११; ज. घ मूल पृ० २२३५ व २२७४ ॥
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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