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________________ (२) पष्ठ १२४ विषय विषय कृष्टिया कोनसे द्रव्य से करता है इसका निर्देश ९३ | परस्थान व स्वस्थान गोपुच्छ का नाश १२३ अपकपित द्रव्य का विभाजन . ९३ | आय और व्यय द्रव्य का कथन सग्रह एव अवयव कुष्टि की अपेक्षा कृष्टियो की सख्या ६४ स्वस्थान-परस्थान गोपुच्छ के सदभाव का विधान १२४ कृष्टि मे द्रव्य विभाजन सम्बन्धी निर्देश ४। मध्यम खण्डादि करने का कथन १२४ प्रथमादि बारह सग्रह कृष्टि का आयाम पत्यके विरच्यमाय अपूर्व कृष्टियो का विधान १२९ असल्यातवें भाग के क्रम से घटता है कृष्टियो के घात का कथन किस कपायोदय से श्रेणी चढने वाले के कितनी क्रोध की प्रथम सग्रह कृष्टि की प्रथम स्थिति में संग्रह कृष्टिया होती है EL | समयाधिक प्रावलीकाल शेप रहने की अवस्था १३३ अन्तर कृष्टियो को सख्या व उनका क्रम ९९ | संग्रह कृष्टियो के चरम समय मे फाली के देने का उक्त कथन विशेष स्पष्टीकरण १०० विधान १३६ लोभ की जघन्यकृष्टि के द्रव्य से क्रोध की उत्कृष्ट द्वितीय संग्रह वेदक के उदयादि का विधान प्रथम कृष्टि पर्यन्त देयद्रव्य सग्रहवत् है १३७ पावकृष्टि सम्बन्धी विधान १०६ क्रोध की द्वितीय संग्रह का स्वस्थान-परस्थान द्रव्य देने का क्रम, कृष्टि भेद तथा उष्ट्रकूट रचना सक्रमण की सीमा १३७ का कथन १०७ स्वस्थान-परस्थान सक्रमण मे नियम का विशेष अनुभाग की अपेक्षा कृष्टि व स्पर्धक का लक्षण १११ । स्पष्टीकरण १३९ कृष्टिकारक कृष्टिका भोग नहीं करता, इसका निर्देश प्रकृत में किस-किस कृष्टि का सक्रमण नही है १३९ एव कृष्टिकरण काल समाप्ति का निर्देश वेद्यमान व अवेद्यमान संग्रह कृष्टि के बन्ध प्रबन्ध कृष्टिवेदनाधिकार का निर्देश कृष्टिवेदन तथा इसके प्रथम समय में होने वाले सग्रह कृष्टियो मे अवयव कृष्टियो के द्रव्य का बन्ध-सत्त्व का निर्देश अल्पवहुत्व १४० ११२ प्रकृत मे उच्छिष्टावली, नवकप्रबद्ध के अनुभाग का वेद्यमान कृष्टि की प्रथम स्थिति मे समयाधिक निर्देश प्रावली शेष रहने पर होने वाली स्थिति एव कार्य १४१ ११२ कृप्टिकारक व वेदक के क्रम तथा प्रथम सग्रह कृष्टि द्वितीय संग्रह वेदक के चरम स्थिति वन्ध व सत्त्व १४२ का पहले वेदन होता है इसका निर्देश क्रोध की तृतीय सग्रह की प्रथम स्थिति स्थापना कृष्टि वेदक के प्राथमिक समय में होने वाले कार्य ११४ । तथा चरम समय कोष वेदक के बन्ध-सत्त्व १४३ प्रकृत मे उदीयमान कृष्टि, बन्ध कृष्टियों का निर्देश ११५ | मान का प्रया | मान की प्रथम स्थिति स्थापना तथा उसका प्रमाण १४३ प्रकृत मे अल्पबहुत्व ११६ | मान की प्रथम सग्रह कृष्टि का वेदन प्रकार क्रोधद्वितीयादि समयो मे उक्त विषय का विशेषस्पष्टी- बत् तथा चरम समय मे वन्ध सत्त्व का निर्देश १४४ करण मान की द्वितीय संग्रह कृष्टि का वेदन तथा इसके प्रति समय मे इन कृष्टियो का बन्ध-उदय कैसे होता चरम समय मे बन्ध-सत्त्वका निर्देश है इसका निर्देश १४५ सममण द्रव्य का विधान ११६ तृतीय सग्रह का वेदन तथा अन्त मे बन्ध-सत्त्व १४६ प्रति समय होने वाली अपवर्तन की प्रवृत्तिका कम १२३ | तथा वहा दो चरम समयमे होनेवाला बन्ध-सत्त्व १२० माया की प्रथम द्वितीयमादि कृष्टियोके वेदनका वर्णन १४७
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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