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________________ माथा २३०-२३६ ] क्षपणासार [ १६७ हेट्ठा दंडस्संतोमुहुत्तमावजिदं हवे करणं । तं च समुग्धादस्स य अहिमुहभावो जिणिंदस्स ॥२३०॥६२१॥ सट्टाणे आवजिदकरणेवि य णत्थि ठिदिरसाण हदी। उदयादि अवट्ठिदया गुणसेढी तस्स दव्वं च ॥२३१॥६२२।। जोगिस्स सेसकाले गयजोगी तस्स संखभागो य । जावदियं तावदिया आवजिद करणगुणसेढी ॥२३२॥६२३॥ ठिदिखंडमसंखेज्जे भागे रसखंडमप्पसत्थाणं । हणदि अणंता भागा दंडादी चउसु समएसु ॥२३३॥६२४॥ चउसमएसु रसस्स य अणुसमोवणा असत्थाणं । ठिदिखंडस्लिगिसमयिगघादो अंतोमुहुत्तुवरिं॥२३४॥६२५॥ जगपूरणम्हि एक्का जोगस्स य वग्गणा ठिदी तत्थ। अंतोमुत्तमेत्ता संखगुणा आउा होदि ॥२३५।।६२६॥ एत्तो पदर कवाडं दंडं पच्चा चउत्थसमयम्हि । पाविसिय देहं तु जिणो जोगणिरोधं करेदीदि ॥२३६॥कुलयं॥६२७॥ अर्थ-अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयु शेष रहनेपर केवलीभगवान् समुदुधातक्रिया दंड, कपाट, प्रतर व लोकपूरणरूपसे करते हैं । दंड समुद्घात करनेके समय में अन्तर्मुहूर्त कालतक अधः (पहले) आवजितकरण होता है। जिनेन्द्रभगवानका समुद्घात करने के सम्मुख होना ही आवजितकरण कहलाता है। आवजितकरणकरनेके पहले जो स्वस्थान है उसमें और आवजितकरणमें सयोगकेवलीके स्थिति व अनुभागघात नही है तथा उदयादि अवस्थितरूप गुणश्रेरिण आयाम है एवं उस गुणश्रेणिमआयामका द्रव्य भी अवस्थित है । आवजितकरण करने के पहले समयमें जो सयोगकेवलीका अवशिष्ट काल और अयोगकेवलीके सर्वकालका संख्यातवांभाग इन दोनोंको मिलानेपर जितना प्रमारण आवे उतने प्रमाण आवजितकरणकालका अवस्थितगुणश्रेणिआयाम जानना । दंडादिसमुदुघातके चारसमयों में स्थिति तो असंख्यातबहुभागप्रमाण और अप्रशस्तकर्मों का अनुभागका अनंत
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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