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________________ १८०] क्षपणासार [गाथा २१४ इन गाघागेमे पुरुषवेदसहित मानके उदयके साथ क्षरकश्रेणि चढ़नेवाले की प्रत्पणा है । . के अन्तर नहीं किया गया यानि अन्तर करनेसे पूर्वतक क्रोध या मानसहित क्षपक____ ..पर आरोहण करनेवाले जीवको क्रियाओंमें कोई अन्तर नहीं है, अन्तर करने के पश्चात् विभिन्नता है और वह विभिन्नता यह है कि अन्तरके पश्चात् क्रोधकी प्रथमस्थिति नहीं होती। जिसप्रकार पुरुषवेदसहित क्रोधोदयके साथ क्षपकके अन्तर्मुहर्तप्रमाण कोषको प्रथमस्थिति होतो थी उसी प्रकार पुरुषवेदोक्यसहित मानोदयवाले क्षपकके मानकी प्रथमस्थिति होती है । क्रोयोदयसे श्रोणि चढ़नेवाले क्षपकके कृष्टिकरणकालपर्यन्त क्रोधकी प्रथमस्थिति और क्रोधको तीनों संग्रहकृष्टिका क्षपणाकाल, इन दोनोंको मिलानेसे कालका जो प्रमाण होता है उतनाकाल मानोदयसे श्रोणिपर आरोहण करनेवालेके मानको प्रथमस्थितिका है । क्रोधोदयसे चढ़े हुए क्षपकके जिस काल मे अश्वकर्णकरण व पूर्वस्पर्वक करता है उसकाल में मानोदयसे श्रेणी चढ़ा हुआ क्षपक क्रोधका स्पर्धकल्पसे क्षय करता है, क्योकि मानोदयसे श्रेणी चढ़े क्षपकके क्रोधोदयका अभाव होनेसे स्पर्वकरूपसे विनाश होने में कोई विरोध नहीं है । अनिवृत्तिकरणपरिणामोका अभिन्नस्वभाव होते हुए भी भिन्न कषायोदयल्प सहकारिकारणके सन्निधानके वशसे प्रकृतमें नानापना सिद्ध है अर्थात् एककाल में कार्योकी विभिन्नता हो जाती है। क्रोधोदयसे युक्त क्षपक जिसकाल में चार संज्वलनकषायोंकी कृष्टियां करता है उसकालमें मानोदयसहित क्षपक उससमय तोन संज्वलनकषायोका अश्वकर्णकरण करता है। क्रोधोदयी क्षक जिसकालमे कोषको तीनसंग्रहकृष्टियोंका क्षय करता है उसकाल में मानोदयी क्षयक संज्वलनमान-माया-लोभकी (३४३) ६ सग्रहकृष्टियां करता है। क्रोधोदयवाला क्षपक जिसकाल में मानकी तीनसनकृष्टियोका क्षय करता है उसोकाल मे मानोदयीक्षपक भी मानको तोनसंग्रहकृष्टियोका क्षय करता है इसमे कोई अन्तर नहीं है। इस स्थलसे लेकर मागे जिसप्रकार क्रोधके उदयसे श्रेणि चढनेवालेकी क्षरणाविधी कही गई है वैसी ही विधि मानोदयने श्रेणी चढ़नेवाले जीवको जानना चाहिए । आगे पुरुषवेदसहित मायोदयसे श्रेणि चढ़नेवाले क्षपकको विभिन्नता बतलाते हैं-- अन्तर करके मायाकी प्रथमस्थिति करता है, क्योकि क्रोध व मानकषायके उदयका अभाव है। क्रोधको प्रथमस्थिति, अश्वकर्णकरणकाल, कृप्टिकरणकाल, क्रोधकी तोनतग्रकृप्टियोंका क्षपणाकाल, मानकी तीनों संग्रहकृष्टियोका क्षपणाकाल, इनसर्व कालोको मिन्नाने से कालका जो प्रमाण हो उतनाकाल मायोदयीक्षपककी प्रथम स्थितिका
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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