SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा १६३-१६४ ] क्षपणासाय [ १४३ तीन अघातियाकर्मोका स्थितिसत्त्व यद्यपि असंख्यातहजारवर्ष है तथापि पहिलेसे हीन है। यह स्थितिबन्ध व स्थितिसत्त्व पूर्वोक्त त्रैराशिकविघिसे प्राप्त करना चाहिए'। से काले कोहस्स य तदियादो सग्गहादु पढमठिदि । अंते संजलणाणं बंधं सत्तं दुमास चउवस्सा ॥१६३।५५४॥ अर्थ-पूर्वोक्त क्रोधकी द्वितीयसग्रहकृष्टि वेदनके चरमसमयसे अनन्तर समयमै क्रोधकी तृतीयसंग्रहकृष्टिके प्रदेशाग्रसे प्रथमस्थिति होती है उसके अन्तिमसमयमै संज्वलनचतुष्कका बन्ध दोमाह और स्थितिसत्त्व ४ वर्ष होता है। विशेषार्थ--क्रोधकी तृतीयसंग्रहकृष्टिका जो द्रव्य द्वितीयस्थिति में था उसमें से अपकर्षण करके प्रथमस्थितिको करनेवाला क्रोधकी तृतीयकृष्टि का प्रथमसमयवर्तीवेदक होता है उससमय द्वितीयकृष्टिके दो समयकम दोआवलिप्रमाण नवकसमयप्रबद्ध और उच्छिष्टावलिप्रमाण द्रव्यको छोड़कर शेषसर्वद्रव्य तृतीयकृष्टिरूप परिणमव कर जाता है । इसप्रकार क्रोधकी तृतीयकृष्टिका द्रव्य चारित्रमोहनीयकर्मके द्रव्यका (+) ३१ भाग हो जाता है। उसीसमय क्रोधकी तृतीयकृष्टिको अन्तरकृष्टियोंके असंख्यातवेभागकी उदीरणा होती है और असंख्यातवेभागप्रमाण कृष्टियोंका बन्ध होता है, किन्तु उदीरणासे बन्धकृष्टियोको सख्या अल्प है । क्रोधकी द्वितीयकृष्टिके वेदनका जो विधान कहा गया है वही तृतीयसंग्रहकृष्टिका जानना । प्रथम स्थितिमे जब आवलि-प्रत्यावलिकाल शेष रह जाता है उससमय आगाल-प्रत्यागालकी व्युच्छित्ति हो जाती है और एकसमयअधिक आवलिकाल रहनेपर जघन्यस्थितिउदीरणा होती है, उसीसमय कोषका चरमसमयवर्ती वेदक होता है और तभी संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध पूर्ण दोमास एव स्थितिसत्व चारवर्षप्रमाण होता है । इसीप्रकार पूर्वोक्त त्रैराशिकविधिसे शेषकोंका भी स्थितिबन्ध व स्थितिसत्त्व जान लेना चाहिए । *से काले माणस्स य पढमादो संगहादु पढमठिदी। माणोदयअद्धाए तिभागमेत्ता हु पढमठिदी ॥१६४॥५५५॥ १. जयधवल मूल पृष्ठ २१८७। २. क. पा० सुत्त पृष्ठ ८५८-५९ सूत्र ११८३ से ११६० । धवल पु० ६ पठ ३९२। ३. जयधवल मूल पृष्ठ २१८७-८८ । ४. क. पा० सुत्त पृष्ठ ८५६ सूत्र ११६१-६२ । ५० पु० ६ पृष्ठ ३६२-६३ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy