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________________ गाथा १३१] क्षपणासार [१२१ जिसप्रकार लोकव्यवहार में जमा-खरच कहा जाता है उसी प्रकार यहीं भी आयद्रव्य और व्यय द्रव्य रूप कथन करते हैं । अन्य संग्रहकृष्टियोंका द्रव्य संक्रमण करके विवक्षित संग्रहकष्टि में आया (प्राप्त हुआ) उसे आयद्रव्य और विवक्षित संग्रहकृष्टिका द्रव्य संक्रमण करके अन्यसंग्रहकृष्टियोमें गया उसे व्ययद्रव्य कहते हैं। यहां क्रोधकी प्रथमसंग्रहकष्टिबिना अन्य ११ संग्रहकृष्टियोके स्वकीय-स्वकीय द्रव्यको अपकर्षणभागहारका भाग देनेपर लब्धमें से एकभागप्रमाण द्रव्य संक्रमण करता है अत: उसे 'एकद्रव्य' कहते हैं तथा क्रोधकी प्रथमस ग्रह कृष्टि के द्रव्यको अपकर्षणभागहारका भाग देते. पर लब्धमे से जो एकभागप्रमाण द्रव्य सक्रमण करता है वह 'तेरह द्रव्य' है, क्योंकि अन्यसग्रहकष्टिके द्रव्य से क्रोधकी प्रथमसग्रहकृष्टिका द्रव्य नोकषायका द्रव्य मिल जानेसे से १३ गुणा है। लोभकी तृतीयसंग्रहकृष्टि में लोभकी प्रथमसग्रहकष्टि और द्वितीयसंग्रहकष्टि का अपकर्षित द्रव्य सक्रमण करता है इसलिए लोभकी तृतीयसग्रहकृष्टि में आयद्रव्य दो हुआ। लोभकी द्वितीयसग्रहकृष्टि में लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिका अपकर्षितद्रव्य संक्रमण करता है इसलिए द्वितीयसग्रहकृष्टि में आयद्रव्य एक है तथा लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में मायाकी प्रथम-द्वितीय व तृतीयसग्रहकृष्टि का अपकर्षित द्रव्य संक्रमण करता है अतः लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में आयद्रव्य तीन है । मायाकी तृतीयसंग्रहकृष्टिमें मायाको द्वितीय व प्रथमसंग्रहकष्टिका अपकर्षितद्रव्य संक्रमण करता है इसलिये मायाकी तृतीयसंग्रहकष्टिमे आय द्रव्य दो है। मायाकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिमें मायाकी प्रथमसंग्रहकष्टिका अपकर्षित द्रव्य संक्रमण करता है इसलिए मायाको द्वितीयसंग्रहकृष्टिमें आयद्रव्य एक है तथा मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें मानकी प्रथम, द्वितीय व तृतीयसंग्रहकृष्टिका अपकर्षितद्रव्य सक्रमित होता है अतः मायाकी प्रथमसंग्रहकष्टिमें आयद्रव्य तीन हैं । मानकषायकी तृतीयसंग्रहकृष्टि में मानकी द्वितीय व प्रथमसंग्रहकष्टिका अपकषितद्रव्य संक्रमित होता है इसलिए मानकी तृतीयसंग्रहकृप्टिमें आयद्रव्य दो है, मानकी द्वितीयसग्रहकष्टि में मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिका ही अपकषितद्रव्य संक्रमण करता है इसलिए मानकी द्वितीयसग्रहकष्टिमें आयद्रव्य एक है तथा मानकी प्रथमसंग्रह कृष्टिमें क्रोधकी प्रथम-द्वितीय व तृतीयसग्रहकृष्टिके अपकर्षित द्रव्यका सक्रमण होता है इसलिए मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमे आय द्रव्य १५ है । क्रोधकी तृतीयसंग्रहकृष्टि मे क्रोधकी प्रथम व द्वितीयसंग्रहकष्टिका अपकर्षितद्रव्य सक्रमण करता है अतः क्रोधकी तृतीयसंग्रहकृप्टि. में आय द्रव्य १४ है, क्रोधकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि ये क्रोधकी प्रथमसग्रहकृष्टिका अपकपित
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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