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________________ ११०] क्षपणासार [गार्थी ११५.११७ वह जघन्यकृष्टिमें बहुत है और शेष सर्वकृष्टियोंमें अनन्तरोपनिधासे अनन्तभागहीन है। जिसप्रकार द्वितीयसमयमें कृष्टियोमें दीयमान प्रदेशाग्रकी प्ररुपणा की है उसीप्रकार सम्पूर्णकृष्टिकरणकालमे दीयमान प्रदेशाग्रके २३ उष्ट्रकूटोंकी प्ररुपणा करना चाहिए, किन्तु दृश्यमान प्रदेशाग्न सर्वकालमें अनन्तभागहीन जानना चाहिए । जो प्रदेशाग्न सामस्त्यरूपसे प्रथमसमयमे कृष्टियोमें दिया जाता है वह सबसे अल्प है, उससे द्वितीयसमयमें कृष्टियों में दिया जानेवाला प्रदेशाग्न असख्यातगुणा है, इससे तृतीयसमयमे कृष्टियोमें दिया जानेवाला प्रदेशाग्न असंख्यातगुणा है । विशुद्धि में प्रतिसमय अनन्तगुणीवृद्धि होनेके कारण सर्वकृष्टिकरणकाल में उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा-असख्यातगुणा प्रदेशाग्र अपकर्षणकरके कृष्टियोंमें निक्षिप्त किया जाता है'। किट्टीकरणद्धाए चरिमे अंतोमुहुत्तसुज्जुत्तो । चत्तारि होति मासा संजलणाणं तु ठिदिबंधो ॥११५॥५०६।। सेसाणं वस्साणं संखेज्जसहस्सगाणि ठिदिबंधो। मोहस्स य ठिदिसंतं अडवस्संतोमुहुत्तहियं ॥११६॥५०७॥ घादितियाणं संखं वस्ससहस्साणि होदि ठिदिसंतं । वस्साणमसंखेजसहस्साणि अघादितिगणं तु॥११७॥ कु.॥५०८॥ अर्थ-अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कृष्टिकरणकालके अन्तिमसमयमें अन्तर्मुहूर्तअधिक चारमासप्रमाण संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध है। यह स्थितिबन्ध अपूर्वस्पर्षककरणकालके चरमसमयमें आठवर्षप्रमाण था सो एक-एक स्थितिबन्धापसरणमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण घटकर इतना अवशेष रहता है । शेष कर्मोका-स्थितिबन्ध संख्यातहजारवर्षमात्र है, पूर्व में भी संख्यातहजारवर्षमात्र ही था सो सख्यात गुणेहीन क्रमरूप संख्यातहजार स्थितिवन्धापसरण हो जानेपर भी आलापसे इतना ही कहा है तथा मोहनीयकर्मका स्थितिसत्त्व पहले सख्यातहजारवर्षप्रमाण था सो घटकरके यहां अन्तमुहर्तअधिक आठ १. जयघवल मूल पृष्ठ २०५६ से २०६४ तक । २. इन गाथामोसे सम्बन्धित विषय क० पा० सुत्त पृष्ठ ८०३-४ सूत्र ६७३ से ६७७ तक आया है। धवल पु०६ पृ० ३८० । जयघवल मूल पष्ठ २०६४ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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