________________
२३० ] लब्धिसार
[ गाथा २८६ देने योग्य एकखण्डका प्रमाण प्राप्त होता है। इसको सर्वकृष्टिके प्रमालसे गुणित कर देनेपर सर्व मध्यमखण्ड द्रव्यका प्रमाण प्राप्त हो जाता है । इसप्रकार यहा विवक्षित द्वितीय समयमे कृष्टिरूप होने योग्य द्रव्यमे बुद्धिकल्पनासे अधस्तनशीर्षविशेष आदि चार प्रकारके द्रव्य भिन्न-भिन्न स्थापित किये । ऐसे ही यहा पर तृतीयादि समयोमे कृष्टिरूप होने योग्य द्रव्यमे विधान जानना । अथवा आगे क्षपकश्रेणिके वर्णनमे अपूर्वस्पर्धकका, बादरकृष्टिका या सूक्ष्मकृष्टिका वर्णन करते हुए ऐसे विधान कहेगे; वहा ऐसा ही अर्थ
अब यहा द्रव्य चयहीन होकर जाता हुआ अठारहवें स्थानमे २७६ होता है। हमे ५४८ का आधा २७४ अभीष्ट है । चू कि एकस्थान आगे पीछे जाने पर (अर्थात् १८ वें से १७ वे या १७ वें से १८ वे को जाने पर) १६ (एक चय) की कमी या वृद्धि होती है, तो २ मात्र परमाणुकी हीनता के लिए कितना स्थान आगे जाना पडेगा ? उत्तर होगा १६४३== स्थान । अर्थात् २७६ से है स्थान प्रागे जाने पर वही कृष्टिका परमाणु परिमाण २७४ हो जाता है जो कि ५४८ से ठीक प्राधा है तो २७४ परमाणुवाला स्थान १८६ वा हुआ, इसलिये इससे एक स्थान पूर्व अर्थात् १७१ वें स्थान मे ही एक गुणहानि पूरी हो गई ऐसा जानना चाहिए, (क्योकि जहा द्रव्य प्राधा रह जाय उससे एक स्थान (पूरा-पूरा) पहले जाने पर जो निषेक स्थित हो वही प्रथम गुणहानिका चरमस्थान होता है) अतएव दो गुणहानि= १७६४ २=३४१
अब मध्यधन-एककम गच्छका प्राधासे न्यून दो गुणहानिचय अर्थात् ४६०-३४१-३१ =चय
॥ ४६० -३४१-५३=चय ॥ ४६०-२८१चय ॥ ४६° x =चय , ४६० x पर= १६ (चय)
अव सूत्रानुसार एककम गच्छ ११ का आधा ५३ से चय १६ को गुणा करने पर ८८ आये। चय मिलाने पर ८८+१६-१०४ प्राये। १०४४ गच्छ (१२)=१२४८ पाये । यही उभय द्रव्यविशेषद्रव्य है । शेष सुगम है।