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क्षपणासार
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[गाथा ७६ प्रमाण प्राप्त होता है अतः अपकर्षितद्रव्य पूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणाके असंख्यातवेभाग होनेसे यह सिद्ध हो जाता है कि पूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणामे पूर्व अवस्थित द्रव्य, निक्षिप्तद्रव्यसे असंख्यातगुणा है । इसीको क्षेत्र विन्यासके द्वारा स्पष्ट किया जाता है
समस्तद्रव्यको पूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणा प्रमाणरूप करनेपर डेढ गुणहानिप्रमाण यादिवर्गणा होती हैं, उसका क्षेत्रविन्यास निम्न प्रकार है जिसका विषकम्भ आदिवर्गणा प्रमाण है और बायाम डेढगुणहानि प्रमाण है ।
--------डेढगणहानि --------------------
---110AILE---
--------.- एकगुणहानि --------------अर्धगुणहानि---
इस क्षेत्रके विपकम्भको उत्कर्पण-अपकर्पणभागहार प्रमाण फालियां करनी चाहिए । उनमेसे एक फालिको ग्रहणकर पृथक् स्थापित करना चाहिए । इस सबंधमें चिमनं०२ देखना चाहिए।
१. सपना मूल २२०२३ । जयधवल मूल पृष्ठ २०३४ ।