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________________ ( ८६ ) पुरुपोथी रातमां पथारीने विषे । तेनाथी) आसनथी उठाय छे.. .. सूवाय छे. मुनिओ वडे क्षमा रखाय छे. सुख वडे थवाय छे. | मेघ वडे वरसायु. - reamiman-retra पाठ १९ मो. केटलाएक खास उपयोगी कृदन्त. (हेत्वर्थकृदन्त, संवन्धकसूतकदन्त, वर्तमानकृदन्त तथा कर्मणि भूतकृदन्त विषे.) १ कोइपण धातुने उं ( अथवा जवलेज तुं ) प्रत्यय लगाडवाथी हेत्वर्थ कृदन्त थाय छे. जेमके, वोल्लेडं, वोल्लिङ, वोलवाने, वोलवामाटे.. २ कोइपण धातुने उं, अ, ऊण, उणं, उआण, उआणं ( अथवा जवलेज तुं, तूण, तुआण, तूणं अने तुआणं) प्रत्ययो लगाडवाथी संबन्धकभूतकृदन्त थाय छे. जेम, रमेङ, रमिअ, रमिऊण, रमिऊणं, रमिउआण, रमिउआणं; रमीने. ३ कोइपण धातुने 'न्त, माण' प्रत्ययो लगाडवाथी पुंलिंग तथा नपुं सकमां वर्तमान कृदन्तना रूपो थाय छे; तथा स्त्रीलिंगमां ई, न्ता, न्ती, माणा अने माणी प्रत्ययो लगाडवाथी स्त्रीलिंग वर्तमान कृदन्त थाय छे; जेम, * कहेन्तो, कहन्तो, कहमाणो, कहन्तं, कहमाणं, हसेई, हसन्ती, हसन्ता, हसेमाणा, हसेमाणी इत्यादि. ४ देरेक धातुओ थकी पुंलिंग तथा नपुंसकमां 'इअ ' तथा स्त्रीलिंगमां 'इआ' तथा इई प्रत्ययो लगाडवाथी कर्मणिभूतकृदन्त थाय छे जेम, उंघिओ, उंविअं, संघिआ, उघिई. ५ चालु पाठमां कहेला दरेक प्रत्ययो लगाडता पहेलां धातुथी विकरण ' पण जोडाय छे अने हेत्वर्थकृदन्त तथा संवन्धकभूतकृदन्तना पूर्वना विकरणना 'अ' नो 'ए' अथवा 'इ' थाय छे. * जुओ पाठ पहेलो नियम चोथो.
SR No.010661
Book TitlePrakrit Margopdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1919
Total Pages195
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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