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________________ ( ६२ ) तेओ वे वावनुं खारुं पाणी पीता । माला वडे हरिनुं शरीर मनोहरंछे. नथी.. नदीओमां गंगा पहेली छे. केवली समुद्रना तळने देखे छे. पितानी शरमने लीघे ते चोरी करतो नथी. क्रिया विनानुं ज्ञान फोकट छे. माणसो नाटक जुझे छे. स्त्रीओ धीमे धीमे चाले छे. सज्जनो आदरथी ज्ञान ग्रहण करे छे. आभूषणनी शोभावडे स्त्रीओनुं शरीर शोभे छे. आकाशमां दुंदुभि वोले छे. ज्ञान विनयथी वधे छे. दूध पीवानी इच्छाने लीधे ते गायने इच्छे छे. स्त्रीओनुं स्नान कुंडमां थाय छे. : हे महावीर ! तुं सिद्धि आप.. योगी स्त्रीओने इच्छतो नथी. पक्षी स्त्रीनी पासे वेसे छे अने चांच वडे फल खाय छे. राजा स्त्रीओनी साथे वनमां फरे छे. कल्याणने माटे गुरुनी पासे रहे. शा माटे मासीनी पासे जतो नथी. देवो जमीनने अडकता नथी. वृहस्पति बुद्धिनो दरियो छे. पुत्रो मातांने नमे छे. राजा नगरनी परीक्षा करे छे. हे भाइ, तुं उठ अने यत्न कर. रात्री गई हवे प्रमाद शासारु करे छे? जाय छे पुत्रो पितानो विनय करे छे. विद्यार्थीओने तेओ वे इनामं आपे छे. स्त्रीलिङ्ग - संवोधन. वा एकवचनमां अन्त्य स्वरनो 'ए' किं० नमानी जेडुज थायछे. तथा मूळ आकासे समान प्रथमानी जेमन जागवां. मारन्न शीना मेवं कल्पे थाक्छे, तथा बहुवचन रान्त नानोनां संवोधन एकागमन तथा उक कामांना संवोधननुं एकवचन 'हरि तथा भाणु' नी माऊक थायछे तेमज बहुवचन प्रथनानी जेवुंज छे. ईकागन्त तथा अकागन नामोना संबोधन' एल्वचनमां कोह पण प्रत्यय नहि जोडां अन्त्य स्वर हूस्व थायछे.. बहुवचन प्रथमा जेवुंज छ.
SR No.010661
Book TitlePrakrit Margopdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1919
Total Pages195
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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