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'प्रभावकचरित 'कारके कथनसे ज्ञात होता है कि इतिहास प्रसिद्व मेवाड देशके चितोड (चित्रकूट )के राजा जितारिने हरिभद्र भट्टकी विद्वत्ताकी कदर की और अपने राज्यमे उस महापंडितको पुरोहितके सम्मान्य पद पर नियुक्त किया। ज्ञान और सम्मान के साथ सत्ताका योग होता है तब आदमीको गर्वका नशा आ जाता है। हरिभद्र भट्ट इस साहजिक वृत्तिसे बचे नहीं थे। हरिभद्र भट्टको अपने ज्ञानवैभवका बडा मद था। उन्होने बडे बडे वादियोको शास्त्रार्थमे जीत कर वादिविजेताकी ख्याति कमा ली थी। यही कारण था कि वे अपने हृदमें विश्वास कर बैठे कि 'इस जगतमें मेरे जैसा समर्थ विद्वान वेशक कोइ नहीं होगा। ऐसी स्थितिमें वे खुदको कलिकालसर्वज्ञ मानते-मनवाते थे। ऐसा होने पर भी उनकी जिज्ञासावृत्ति कुछ कम नहीं थी। वे नये विद्वानोंके संसर्गमें आते थे और अपनी विद्याकी जांच पड़ताल करते रहते थे। निखालसवृत्तिसे अपनी हृदय'गत सरलताका परिचय भी देते रहते थे। इसलिये उन्होने अपने गर्वकी मर्यादास्वरूप प्रतिज्ञा कर रक्खी थी कि-' इस पृथ्वी पट पर जिस किसीका वचन मै न समझ सकूँ उसका शिष्य बनूंगा।' जन्मसंस्कार-जैनधर्म प्रति विरोधी कट्टर ब्राह्मणता : ___एक समयकी बात है जब हरिभद्र भट्ट पालखीमें बैठ कर राजसभामें जा रहे थे और उनकी परिचर्या करनेवाला विद्यार्थीगण उनकी स्तुतिस्वरूप जयघोष करता हुआ जा रहा था कि रास्तेमें राजाका एक विशालकाय मदोन्मत्त हस्ती निरंकुश होकर भाग छूटा। रास्तेमें चलनेवाले मानवसमुदायमें इस घटनासे भयका वातावरण जम