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________________ धर्मफल देशना विधि : ४०९ लेता है। उसके जन्मसे सबके मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं तथा उत्तम लग्न व ग्रहमें तथा सब दोष 'रहित उत्तम सयममे उसका जन्म होता है। ' ' . . . सुन्दरं रूपं आलयो लक्षणानां रहितमामयेन युक्तं प्रज्ञया संगतकलाकलापेन ।। १० ।। (४५३) मूलार्थ- सुन्दर रूप व लक्षणों सहित, रोग रहित, बुद्धियुक्त और कलाकलाप सहित (जन्म होता है )॥ .' विवेचन- सुन्दर रूपम्- सुंदर अच्छे संस्थान (संहनन) तथा बंधारणवाला रूप सहित शरीर, आलयो लक्षणानां- चक्र, वज्र, स्वस्तिक, मत्स्य, कलश, कमल आदिके शुभ लक्षण उसके हाथ व पैरो पर दीखते हो, रहितमामयेन- ज्वर, अतिसार, भगंदर आदि रोगोंसे दूर ( रहित ), युक्तं प्रज्ञया-वस्तुओंके यथार्थ ज्ञानको अहण करनेवाली वस्तु के वोधको जाननेवाली शक्ति 'बुद्धि) सहित, संगतं कलाकलापेन- लिपि, शिक्षा आदिसे लेकर पक्षीको बोली जानने तककी सब कलाओंके समुदाय सहित । .. .. . . तथा जब वह ऐसा धर्मिष्ठ पुरुष देवलोकसे इस . मनुष्य भवमें जन्म लेता है तब उसको सुदर रूप मिलता है, कई लक्षणोमें युक्त होता है वह रोग रहित, बुद्धि सहित और कलाओंका जानकार होता है। ' तथा- गुणपक्षपातः, असदाचार भीरुना, कल्याण'मित्रयोगः, सत्कथाश्रवणं, मार्गानुगो वोधः, सर्वो - 1 .
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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