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धर्मफल देशना विधि : ४०५
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मूलार्थ - उच्च देवलोक में जन्म होनेको सुगति कहा है । विवेचन - सौधर्म आदि देवलोकमें जन्म होनेको सुगति कहते हैं। तेत्रोत्तमा रूपसंपत् सत् स्थितिप्रभावसुखद्युतिश्यायोगः, विशुद्धेन्द्रियावधित्वम्, प्रकृष्टानि भोगसाधनानि, दिव्यो विमाननिवहः मनो'हराण्युद्यानानि, रम्या जलाशयाः कान्ता अप्सरसः अतिनिपुणाः किङ्कराः, प्रगल्भो नाट्यविधिः, चतुरोदारा भोगाः, सदा चित्ताह्नाद, अनेकसुखहेतुत्वम्, कुशलानुबन्धः, महाकल्याणपूजाकरणम्, तीर्थङ्करसेवा, सद्धर्मश्रुतौ रतिः, सदा सुखित्वंमिति ||८|| (४५१)
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मूलार्थ - उस देवलोकमें उत्तम रूप संपत्ति, सुंदर स्थिति, प्रभाव, सुख, कांति व लेश्याकी प्राप्ति, निर्मल इन्द्रिय, और अवधिज्ञान, उच्च भोगके साधन, दिव्य विमानोंका समूह, मनोहर उद्यान, रम्य जलाशय, सुंदर अप्सराएं, अतिचतुर सेवक, अतिरमणीय नाटकविधि, चतुर उदार भोग, सदा चित्तमें आनन्द, अनेकोंके सुखोंका कारण, सुंदर परिणामवाले कार्यकी परंपरा, महाकल्याणकोंमें पूजा करना, तीर्थकरकी
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