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________________ ३७८ : धर्मविन्दु नाका कारण क्यों है ? कहते हैं महागुणत्वाद् बचनोपयोगस्येति ॥४०॥ (४०७) मुलार्थ-वचनोपयोग महागुणकारी है ॥४०॥ विवेचन-वचनोपयोग-शास्त्रमें यह बात इस प्रकार है व इस प्रकार कही है अतः ऐसे करना चाहिये आदि आलोचना 'सहित कार्य करना वह बहुत गुणकारी है, शास्त्रोक्त वचनका विचार करना बहुत उपकारी है । शास्त्रमें ज्ञानी जनोंका अनुभव तथा जिस रास्ते चल्नेसे इष्टसिद्धि होती है उसका वर्णन होता अतः उसके अनुसार विचारपूर्वक प्रवृत्ति करनेसे भावनाज्ञान होता है। " तन धचिन्त्यचिन्तामणिकल्पस्य भगवतो बहु मानगर्भ स्मरणमिति ॥४१॥ (१०८) - मूलार्थ-वचनोपयोग द्वारा प्रवृत्तिसे अचिन्त्य चिन्तामणि समान भगवानका बहुमान सहित स्मरण होता है ।।४।। - विवेचन-शास्त्रोक्त विचारका स्मरण करके तदनुसार प्रवृत्ति करनेसे शास्त्रके प्रणेताका भी स्मरण होता है । जिसके प्रभावके बारेमे सोचना अशक्य है ऐसे चिंतामणि रत्नके समान प्रभु भगवान है उनका स्मरण भी हो आता है। प्रभुका बहुमानपूर्वक स्मरण भी अत्यंत लाभदायक है अतः शास्त्रोक्त वचनको विचार करके निरंतर प्रवृत्ति करे । वह स्मरण किस प्रकार होता है ? कहते है... भगवतैवमुक्तमित्याराधनायोगादिति ॥१२॥ (१०१)
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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