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________________ यतिधर्म देशना विधि : ३४३ विवेचन-द्रव्य, क्षेत्र, काल व भावसे विभिन्न अवग्रहको साधु धारण करे । अनेक प्रकारके अभिग्रह लेनेका गास्त्रमें कहा हुआ है। कोई खास द्रव्य लेना या विगईका त्याग करना या कुछ काल तक मौनव्रत रखना आदि विभिन्न अभिग्रह है । जैसे-- "लेवंडमलेवर्ड वा, अमुग दव्वं च यज बेच्छामि। अमुंगेण व व्वेण व, यह दव्वाभिगहो एस ॥१९४॥" ---"लेपवाला या विना लेपवाला अमुक द्रव्य ग्रहण करुंगा या भमुक द्रव्य सहित आहारादि वस्तु अमुक वस्तु द्वारा दे तो लेना यह द्रव्य अभिग्रह है" ऐसा शास्त्रोक अभिग्रह ले । तथाविधत्वपालनमिति ।।८।। (३४१) मूलार्थ-और विधिवत् उनका पालन करना ||८१|| विवेचन-जिस प्रकार विधिसमित अभिग्रहोंका पालन हो उस प्रकार करना । यथार्थरीतिसे पालन करना तथा उनको संभालना, लगे हुए अतिचारकी आलोयणा लेवे व फिरसे अतिचार न लगे ऐसा निश्चय करे। तथा-यथाहंध्यानयोग इति ॥८२।। (३६१) मृलार्थ-और योग्य ध्यानको धारण करे ।।८२॥ विवेचन-जैसा उचित हो वैसा धर्मध्यान व शुल्ल ध्यान ध्यावे । जो योग्य हो उसका उल्लंघन किये बिना दोनों शुभ ध्यानोको धारण करें । अथवा ध्यानके योग्य देश व कालका जो उचित हो उनका उल्लंघन न करे।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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