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________________ यतिधर्म देशना विधि : २९७ ही कष्टसाध्य यतिधर्मका पालन है। महान् फल बडे पुरुषार्थसे ही प्राप्त होते हैं । यतिधर्म दुष्कर होने का कारण कहते हैं अपवर्ग: फलं यस्य, जन्म-मृत्यादिवर्जितः। परमानन्दरूपश्च, दुष्करं तन्न चाद्भुतम् ॥२६॥ मूलार्थ- परम आनंदरूप जन्म मृत्यु श्रादिसे रहित मोक्ष जिस यतिधर्मका फल है वह दुष्कर हो उसमे क्या आश्चर्य है। विवेचन- जन्म-मृत्यादिवर्जित:- जन्म, मृत्यु, जरा आदि संस्कार विकार रहित, परमानन्दरूपः- जहाके आनदकी न सीमा हैं, न उपमा । इस यतिधर्मका भलीभांति पालन करनेसे मोक्षकी प्राप्ति होती है । उसके प्राप्त होनेसे आत्मा जन्म, जग, मृत्यु आदि महान् कष्टोसे पूर्णतया मुक्त हो जाती है। वहांका आनंद असीम, उपमा न देने लायक तथा अनत है। उसकी प्राप्तिके लिये जो मार्ग है वह यतिधर्म है अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वह रास्ता इतना कष्ट साध्य हो साध्य या फल महान् है अत' उसको लक्ष्यमे रखकर मार्गभ्रष्ट हुए बिना इस कष्टसाध्य व दुर्गम राह पर चलते रहना चाहिये । जैसे विद्या, मंत्र या औषधिकी साधनाके लिये इस लोकमें कितना यत्न करना पड़ता है। जब यही इतने कष्टसे प्राप्त होते हैं तो महान आत्मिक लब्धिके फलको पानेमें अधिक प्रयास होना अवश्यंभावी है । ऐया दुष्कर यतिधर्म कैसे पाला जा सकता है ? उत्तरमें कहते हैं
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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