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________________ यति सामान्य देशना विधि : २८१ पर हम इसमें तटस्थ हैं और उनका मत खण्डन कानेका विचार नहीं है। विश्व, सुरगुरु और सिद्धसेनने जो असाधारण गुणोंका अनादर करके केवल योग्यताको अंगीकार किया है वह ठीक नहीं हैं। क्योंकि केवल योग्यताका ही प्रतिपादन नहीं किया और असाधारण गुणोंको भी माना है तो हमारा मत भी उसी प्रकारका है। संक्षेपमें कहें तो मनुष्यमें भले ही सब गुण न हो पर यदि उसमें कुछ साधारण गुण हों और अधिक गुण प्राप्त करनेकी योग्यता हो तो वह दीक्षा लेनेके योग्य है। . दीक्षार्थी तथा दीक्षा देनेवालेके बारेमें कह कर अब दीक्षाके चारमें कहते हैं:- उपस्थितस्य प्रश्नाचारकथनपरीक्षादि- . विधिरिति ॥२२॥ (२४८)मलार्थ-दीक्षा लेनेको आये हुए पुरुषसे प्रश्न, आचारकपन तथा परीक्षा आदि विधि है ॥२२॥ - विवेचन-उपस्थितस्य-स्वयं दीक्षा ग्रहण करनेको आया हुआ प्रश्नाचारकथनपरीक्षा-उससे प्रश्न करना, आचार कहना तथा करना आदि अर्थात् सामायिक आदि सूत्र कंठस्थ हो तथा उस प्रकारके अनुष्ठानका अभ्यास करना, विधिः-दीक्षा देनेकी पूर्वोक्त विधि है। ___ जो पुरुष दीक्षा लेनेके लिये आवे' उससे प्रश्न करना, उसे साधुका आचार कहना तथा परीक्षा करना तथा सामायिक आदि सूत्र कंठस्थ है और उसे ऐमा अभ्यास आदि विधि है। कहनेका
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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