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________________ थति सामान्य देशना विधि : २४९ ोष होने से तत्त्वका ज्ञाता, ६ उपशांत, ७ संबके हितमें तत्पर, ८ प्राणि मात्र के हितमें लीन, ९ जिसका वचन ग्रहणीय हो, १० गुणी जनों का अनुकरण करनेवाला, ११ गंभीर, १२ विषाद (शोक), १३ उपशम लब्धिवाला, १४ सिद्धांतका उपदेशक, १५ अपने गुरुसे गुरुपद प्राप्त ॥४॥ विवेचन- गुरुपदार्ह - गुरुपद के योग्य, इत्थंभूत. एव-इन गुणोवास, अन्य नहीं, यदि स्वयं निर्गुणी है तो वह दीक्षा देनेके लिये अयोग्य है, लायक नहीं। वह दीक्षा देनेवाला गुरु कैसा हो जिसमे निम्न १५ गुण हो ।, १. विधिप्रतिपन्न प्रवन्यः - विधियुक्त दीक्षा ग्रहण करनेवाला । २. समुपासितगुरुकुल: - गुरुके परिवारकी भली प्रकार आराधना करनेवाला | ३. अस्खलितशील - दीक्षा लेनेके दिन से अब तक अखड - रूपसे सतत महात्रतकी आराधना की हो. व्रत खंडित न हुआ हो 1 ४. सम्यगधीतागमः- अच्छी तरह आगमका अध्ययन किया हो। सूत्र व अर्थके ज्ञान व क्रियाके गुणको जाननेवाले गुरुकी सेवासे तीर्थंकर प्ररूपित आगमके रहस्य को जाना हो । ५. तत एव विमलतरवोधात् तच्चवेदी - आगमके रहस्यका ज्ञाता व अभ्यस्त होनेसे जिसे अतिशय निर्मल बोध है - वृद्धिका पूर्ण विकास हो चुका है और उससे तत्त्वज्ञाता या जीवादि वस्तुका ज्ञाता है। ६. उपशान्त:- मन, वचन व कायाके विकारोंसे रहित, ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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