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________________ ~ ~ २२८ : धर्मबिन्दु -ये पांच नमस्कार सर्व पापोको नाश करनेवाले हैं और सर्व मंगलोमें मुख्य (प्रथम) मगल है। तथा-प्रयत्कृतावश्यकस्य विधिना चैत्यादि __वन्दनभिति ॥४४॥ (१७७) • मूलार्थ प्रयत्नसे आवश्यक क्रिया करके विधि सहित चैत्यवंदन करना ॥४४॥ विवेचन-आवश्यक- यह आवश्यक क्रिया मल-मूत्रका त्याग तथा अंगप्रक्षालन, नहाना तथा शुद्ध वस्त्र ग्रहण करना आदि हैं। विधिना- पुष्पादि द्वारा पूजा करके मुद्रा, न्यासा आदि प्रसिद्ध विधि द्वारा-चैत्यवंदन करना चाहिये। तथा, माता-पिता आदि गुरुजनोंका वंदन भी। । प्रातःकाल. ऊठनेके पश्चात् शारीरिक क्रियाएं करना । मलमूत्रका त्याग करके नहाकर तथा वस्त्र धारण करके विधिसे प्रभुकी पूजा आदि करके चैत्यवंदन करना। माता-पिता आदि गुरुजनोका तथा साधु, आदिका वंदन व भक्ति करना चाहिये । कहा है कि "चत्यवन्दनतः सम्यक्, शुभो भावः प्रजायते। तस्मात् कर्मक्षयः सम्यक्, तत. कल्याणमश्नुते" ॥११८॥ ----चैत्यवंदनसे सम्यक् प्रकारसे शुभ भाव उत्पन्न होते हैं, उससे सर्व कर्मका क्षय होता है, उससे सर्व कल्याणकी प्राप्ति होती है इत्यादि फल प्राप्ति है। तथा-सम्यकप्रत्याख्यानक्रियेति ॥४५॥ (१७८)
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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