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गृहस्थ विशेप देशना विधि : १८१ धर्म योग्य प्राणीको इन व्रतोंका आगेपण या व्रतदान करना चाहिये ॥१९॥
विवेचन-धर्मके योग्य प्राणीको जिसका लक्षण कह चुके हैं ये अणुव्रत आदि व्रतोंको पूर्वोक्त विधिके अनुसार (श्रावकको) ग्रहण कराना चाहिये, इसे व्रतदान कहते है। ये दो प्रकारसे होता है-सकलतासे तथा विकलतासे। सकलतासे अर्थात् सर्व अणुव्रत, गुणवतं तथा शिक्षात्रतोंके दानको सकलतासे बतदान कहते हैं और आदिमें किसी एक दो या ज्यादा व्रतोंका ग्रहगं कराना विकलतासे बतदान होता है।
इन समकित मूलवाले अणुव्रत आदि अंगीकार करानेके बाद जो करना उचित है वह इस प्रकार है:.. गृहीतेष्वनतिचारपालनमिति ॥२०॥ (१५३)
मूलार्थ-ग्रहण करनेके बाद अनतिचार पालन करना या अतिचार नहीं लगने देना चाहिये ॥२०॥ - विवेचन-गृहीतेपु-सम्यगदर्शन आदि गुणोंका ग्रहण करके अनतिचारपालन-निरतिचार पालन करना-अतिचार, विगधना या देशभंग एक ही है अर्थात् व्रतका संशतः भंग । अतिचारका न होना अनतिचार है। उसका पालन या धारण करना अनतिचार पालन है। ___ सम्यग्दर्शन आदि गुण तथा अणुव्रत आदिके ग्रहण करने पर उन व्रतोंको आंगिक खंडन भी न होने देना चाहिये। जिस प्रकार बुरी हवासे शस्य-धान अपना फल पूर्ण रूपसे नहीं दे सकते उसी प्रकार अतिचार दोपसे व्रत भी अपना फल देनेमें असमर्थ हो जाते हैं अतः निरविचारपालन आवश्यक है। .