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आ० हरिभद्रसरिजीका ग्रन्थराशिः
(१) अनुयोगद्वारसूत्र-विवृति याने शिष्यहिता- यह 'अणु
बोगदार' नामक आगमकी संस्कृतमें विकृति है। (२) अनेकान्तजयपताका- इसमें अनेकान्तवादका निरूपण
है। योगाचार नामक बौद्ध शाखाके मन्तव्यका इसमें खंडन है। (३) अनेकान्तजयपताकोद्योतदीपिका- ग्रंथाक(२,की यह
त्वोपज्ञ वृत्ति है। (४) अनेकान्तप्रघट्ट- इसके विषयमें कुछ ज्ञात नहीं हो सका। (५) अनेकान्तवादप्रवेश- ग्रंथाक(२)का यह संक्षेप माम
पडता है। (६) अनेकान्तसिद्धि- ग्रंथांक(२)में इसका उल्लेख आता है। (७) अर्हच्छीचूडामणि- श्रीसुमतिगणिने इसकी नोध दी है। (८) अष्टकप्रकरण (विरहाकित)- इसमें क्षणिकवाद, नित्यवाद
आदिका विवेचन है। (९) आत्मसिद्धि- इसमे आत्मानी सिद्धि की गई होगी। जिसका
दूसरा नाम 'आत्मानुशासन' (संस्कृतमें) है।