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________________ गृहस्थ देशना विधि : ८३ लेना, स्वगुणोको गुप्त रखना, कीर्तिकी रक्षा तथा दुःखी पर दया करना आदि गुण संतजन, महापुरुषोंके हैं।' तथा-सम्यक् तदधिकाख्यानमिति बा४ा (६२) मूलार्थ और सम्यक् प्रकारसे उच्च गुणोंका आख्यान करना नाना । - विवेचन-सम्यक्-अच्छी तरह, अविपरीत रुपये, तदधिकजन सामान्य व साधारण गुणोंसे विशेषजोगुण है उनका आख्यानवर्णन। . . . . . इन ऊपर 'कहे हुए साधारण गुणोंसे अधिक अंचे व विशेष गुणोंका वर्णन ठीक 'प्रकारसे करे। जब उपदेशक देखे 'कि श्रोता ऐसे गुणों के वर्णनमें रस लेता है तो उच्च गुणोका वर्णन उसके सामने करे। जैसे "पञ्चैतानि पवित्राणि, सर्वेषां धर्मचारिणाम् ।। अहिंसा सत्यमस्तेयं, त्यागो मैथुनवर्तनम्" ॥५०॥ -~-अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), त्याग (अपरिग्रह-दान) तथा अमैथुन (ब्रह्मचर्य पालन )-ये पांच बातें.धर्मोमें पवित्र मान कर अंगीकार की हुई हैं। . . , . . , - जितने आर्यधर्म हैं वे सब इन्हें मानते है. 1. बुद्धधर्मसे पुणशील (पंचशील.) तथा वेदांतमें पंच यम कहे हैं। अतः प्रथम इनका उपदेश देना चाहिये। . . . . . . . . . . . ...तथा-अबोधेऽप्यनिन्देति ॥६॥ (६३) , . . 1
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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