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________________ २०८ गृह्या शाखापुरेऽश्मन्तेऽन्तिका कीला रताहतौ । रज्जौ रश्मिर्यवादिर्दोषादौ गञ्जा सुरागृहे ॥२५॥ अहंपूर्विकादिर्वर्षा, मघा अकृत्तिका बहौ । वा तु जलौकोऽप्सरसः, सिकतासुमनःसमाः ॥२६॥ गायत्र्यादय इष्टका वृहतिका संवर्तिका सर्जिकादूषीके अपि पादुका झिरुकया पर्यस्तिका मानिका । नीका कञ्चुलिकाऽलुका कलिकया राका पताकाऽन्धिकाशूका पूपलिका त्रिका चविकयोल्का पनिका पिण्डिका ॥२७॥ ध्रुवका क्षिपका कीनिका, शम्बूका शिविका गवेधुका। कणिका केका विपादिका, मिहिका यूका मक्षिकाऽष्टका ॥२८॥ कूर्चिका कूचिका टीका, कोशिका केणिकोर्मिका। जलौका प्राविका धूका, कालिका दीर्घिकोष्ट्रिका ॥२९॥ शलाका वालकेषीका, विहडिकेषिके उखा । परिखा विशिखा शाखा, शिखा भगा सुरुङ्गया ॥३०॥ जडा चचा कच्छा पिच्छा, पिञ्जा गुञ्जा खजा प्रजा। झञ्झा घंटा जटा घोण्टा, पोटा भिस्सटया छटा ॥३१॥ विष्ठा मञ्जिष्ठया काष्ठा, पाठा शुण्डा गुडा जडा। बेडा वितण्डया दाढा, राढा रीढाऽवलीढया ॥३२॥ घृणोर्णा वर्वणा स्थूणा, दक्षिणा लिखिता लता। तृणता त्रिवृता त्रेता, गीता सीता सिता चिता ॥३३॥
SR No.010658
Book TitleHemchandra kruti Kusumavali
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherRushabhdev Chagniramji
Publication Year1943
Total Pages263
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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