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मन्दार, सुन्दर, नमेरु, सुपारिजात, सन्तानक आदि कल्पवृक्षोंके फूलोंकी वर्षा (दिवः ) आकाशसे ( पतति ) पडती है, ( वा ) अथवा ( ते ) आपके ( वचसां ) वचनोंकी ( ततिः ) पंक्ति ही फैलती है ।
भावार्थः—भगवानके समवसरणमें जो फूलों की वर्षा होती है, वह ऐसी जान पड़ती है, मानों भगवान्के दिव्य वचन ही फैल गये हों । ( यह छट्ठा प्रातिहार्य है | ) ॥ ३३ ॥
शुभप्रभावलयभूरिविभा विभोस्ते लोकत्रयद्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोद्यद्दिवाकरनिरन्तरभूरिसंख्या
जयत्यपि निशामपि सो सौम्या ॥
जाकी अमित सुदुतिके आगैं, सव दुतिवंत लजावैं । अगनित उदित दिवाकर हू जिहि, समता नहिं कर पावैं ॥ हे विभु, ऐसो तेजपुंज तुव, भामंडल अति नीको । शशिसम सौम्य अहै तर जीतत, दीपतिसों रजनीको ॥
अन्वयार्थी — हे विभो ! (प्रोद्यद्दिवाकरनिरन्तर भूरिसंख्या)
१ "चञ्चत्प्रभा भी पाठ है । " लोकत्रये" भी पाठ है । ३ " सोमसौम्यां" भी पाठ है, जो निशामका विशेषण होता है। इसका अर्थ यों होता है कि, "चन्द्रमाकर के मनोहर अथवा शीतल रात्रिको भी जीतती है ।" ४ सूर्य । ५ जो महाशय सोमसौम्यां पाठको ठीक समझते हैं, उन्हें भाषापद्यमें इस प्रकार पाठान्तर करना चाहिये ; - - "तौह निज दीपतिर्ते जीतत, शीतलशशि- रजनीको ।"
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