________________
तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय
तुभ्यं नमो जिन भवोदधिशोषणाय॥२६॥ तीनभवनके विपदविदारक, तारनतरन, नमस्ते । वसुधातलके विमलभूषन, दूषनदरन, नमस्ते ॥ तीनलोकके परमेश्वर जिन, विगतविकार, नमस्ते । अति गंभीर जगतजलनिधिके, शोषनहार, नमस्तरक्षा
अन्वयार्थी-(नाथ ) हे नाथ, (त्रिभुवनार्तिहराय ) तीन लोककी पीड़ाको हरण करनेवाले ऐसे (तुभ्यं) तुम्हे (नमः) नमस्कार है, (क्षितितलामलभूषणाय) पृथ्वीतलके एक निर्मल अलंकाररूप (तुभ्यं ) तुम्हे (नमः) नमस्कार है, (त्रिजगतः परमेश्वराय ) तीनोंजगत्के परम प्रभु ( तुभ्यं) तुम्हें ( नमः ) नमस्कार है, और (जिन) हे जिन, (भवोदधिशोषणाय) संसारसमुद्रके सोखनेवाले (तुभ्यं) आपको (नमः) नमस्कार है ॥ २६ ॥
को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषै___ स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश । दोषैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वैः
स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोसि॥२७॥ हे मुनीश, गुनगन मिलि सिगरे, आय वसे तुवमाहीं। हकै अतिशय सघन, रह्यौ अवकाश लेश हू नाहीं ॥ १पृथ्वीतलके।