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जानवरोंने भी अपनी शक्तिके अनुसार श्राषक के व्रतधारण किये इससे भलीभांति प्रकट है कि, प्रत्येक मनुष्य ही नहीं बल्कि प्रत्येक जबि जैन धर्म को धारण कर रूक्ता है। इसलिये जैनधर्म सबको बतलाना चाहिये ।
यद्यपि ऊपर के प्रम जोंसे प्रत्येक मनुष्य खुशीसे यह नतीजा निकाल सकता है कि, जैनधर्म आजकलंक जैनियोंकी खास मीरास नहीं है बल्कि मनुष्य क्या जीवमात्रको उसपर पूरा २ अधिकार प्राप्त है और प्रत्येक मनुष्य अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार उसको धारण और पादन कर सकता है। तो मी मैं कुछ थोडेसे शास्त्रोके प्रमाण और अपने भाइयोंके सन्मुख उपस्थित करता हू, जिससे किसीको इस विषय में कोई संदेह और भ्रम बाकी न रहै
पूजासार के श्लोक नं. १६ मे जिनेद्रदेवकी पूजा करनेवाले के दो मेद वर्णन किये हैं। एक नित्य पूजन करनेवाला, जिसको पूजक कहते है और दूसरा प्रतिष्ठादि विधान करनेवाला, जिसको पूजकाचार्य कहते हैं। इसके पश्चात् दा श्लोको में प्रथम भेद अर्थात् पूजकका स्वरूप वर्णन किया है और उसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, चारों वर्ष के मनुष्यों को पूजा करने का अधिकारी बतलाया है । यथा"ब्राहृयः क्षत्रियो वैश्यः शूद्रो वाऽऽयः सुशीलवान् ।
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तो ढाचारः सत्यशौचसमन्वितः ॥ १७ ॥
इसी प्रकार श्रीधर्मसंप्रभावकाचार के ९ वे अधिकारके श्लोक नं. १४२ में श्रीजिनेंद्र देवकी पूजा करनेवाले उपर्युक्त दोनों मेदोका वर्णन करके अगले श्लोक में प्रथम भेद ( पूजक) के स्वरूपकथन में ब्राह्मणाटिक चारों वर्णों के मनुष्योंको पूजा करनेका अधिकारी वर्णन किया है। वह श्लोक यह है