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वैश्य जातिके दस्सोंकी तो बात ही क्या होसकती है ' श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजका तो वचन ही यह है कि विना पूजनके कोई श्रावक हो ही नहीं सकता । दस्से लोग श्रावक होते ही है, इससे उनको पूजनका अधिकार स्वतःसिद्ध है और वे बराबर पूजनके अधिकारी है।
शोलापुरमे दस्से जैनियोके बनाये हुए तीन शिग्वरबन्द मदिर और अनेक चैत्यालय मौजूद हैं । ग्वालियरमे भी दम्सोका एक मदिर है । सिवनीकी तरफ दस्से भाईयोके बहुतसे जनमदिर है । श्रीसम्मेद शिखर, शत्रुजय, मांगीतुंगी ओर कुन्थलगिरि तीर्थोपर शोलापुरवाले प्रसिद्ध धनिक श्रीमान् हरिभाई देवकरणजी दस्साके बनायेहुए जिनमदिर हैं । इन समस्त मदिर और चन्यालयोमे दस्सा, बीसा, सभीलोग बराबर पूजन करते है।
शोलापुरके प्रसिद्ध विद्वान् सेठ हीराचद नेमिचंदनी आनरेरी मजिष्ट्रेट दस्सा जैनी है । उनके घरम एक चैत्यालय है जिसमें वे और अन्य भाई सभी पूजन करते है । इसी प्रकार अन्य स्थानोपर भी दस्सा जैनियोके मन्दिर है जिनमे सब लोग पूजन करते है । जहा उनके पृथक् मदिर नहीं है वहा वे प्राय बीसोंके मदिरमे ही दर्शन पूजन करते है। __ यह दूसरी बात है कि कोई एक द्रव्य या दो द्रव्यसे पूजन करनेको अ थवा मदिरके वस्त्रो और मदिरके उपकरणोम पूजन न करके अन्य वस्त्रादिकोंमें पूजन करनेको पूजन ही न समझता हो और इसी अभिप्रायके अनु. सार कहीं कहींके बीसे अपने मदिरोमे दस्सोंको मदिरके वस्त्र पहनकर और मदिरके उपकरणोको लेकर अष्ट द्रव्यसे पूजन न करने देते हो, परन्तु इसको केवल उनकी कल्पना ही कह सकते हैं-शास्त्रमे इसका कोई आधार और प्रमाण नहीं है । पूजनसिद्धान्त और नित्यपूजनके म्वरूपके अनुसार वह पूजन अवश्य है । तीर्थस्थानो और अनिशय क्षेत्रोकी पूजा वन्दनाको-दस्से बीसे-सभी जाते हैं और सभी अष्टद्रव्यसे पूजन करते हैं।
श्रीतारंगाजी तीर्थपर नानचंद पदमसी नामके एक मुनीम है जो दस्सा जैनी है। वे उक्त तीर्थपर बीसोके मदिरमे-मन्दिरके वस्त्रोको पहन कर और मदिरके उपकरणोको लेकर ही—नित्य अष्ट द्रव्यसे पूजन करते हैं। अन्य स्थानोपर भी-जहाके बीसोमें इस प्रकारकी कल्पना नहीं है-दस्सा