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________________ "चैत्यचैत्यालयादीनां भक्त्या निर्मापणं च यत् । शासनीकृत्य दानं च ग्रामादीनां सदार्चनम् ॥ २८॥ या च पूजा मुनीन्द्राणां नित्यदानानुषङ्गिणी। स च नित्यमहो ज्ञेयो यथाशक्त्युपकल्पितः ॥ २९॥" श्रीसागारधर्मामृतमे भी नित्यपूजनके सम्बधर्म समग्र ऐसा ही वर्णन पाया जाता है, बल्कि इतना विशेष और मिलता है कि अपने घरपर या मदिरजीमे त्रिकाल देववन्दना-अरहतदेवकी आराधना करनेको भी नित्यपूजन कहते है । यथा -- "प्रोक्तो नित्यमहोऽन्वहं निजगृहानीतेन गन्धादिना । पूजा चैत्यगृहेऽहंतः स्वविभवाचत्यादिनिर्मापणम् ।। भक्त्या ग्रामगृहादिशासनविधादानं त्रिसंध्याश्रया। सेवा स्वेऽपि गृहेऽचनं च यमिनां नित्यप्रदानानुगम् ॥२-२५" ' धर्मसंग्रहश्रावकाचारमे, भी "त्रिसंध्यं देववन्दनम्” इस पढके द्वारा ९ वे अधिकारके श्लोक नं २९ मे, त्रिकाल देववन्दनाको नित्यपूजन वर्णन किया है । और त्रिकाल देववन्दना ही क्या, “बलि, अभिपेक (हवन), गीत, नृत्य, वाढित्र, आरती और रथयात्रादिक जो कुछ भी नित्य और नैमित्तिकपूजनके विशेष है और जिनको भक्तपुरुष सम्पादन करते है, उन सबका नित्यादि पच प्रकारके पूजनमे अन्तर्भाव निर्दिष्ट होनेसे, उनमेसे, जो नित्य किये जाते है या नित्य किये जानेको है, वे १ इन दोनो श्लोकोका आशय वही है जो ऊपर अतिरिक्त शब्दके अनन्तर " " दिया गया है। २ आदिपुराणके श्लोक न २७,२८,२९ के अनुसार । ३ आदिपुराणमे पूजनके अन्य चार भेदोका वर्णन करनेके अनन्तर लोक न. ३३ में त्रिकाल देववन्दनाका वर्णन "त्रिसध्यासेवया समम्" इस पदके द्वारा किया है।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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