________________ प्रशस्तिः / धीसिंहसङ्घसुविनेयकधर्मसिंह पादारविन्दमधुलिण्मुनिरत्नसिंहः / भक्तामरस्तुतिचतुर्थपद गृहीत्वा श्रीनेमिवर्णनमिदं विदधे कवित्वम् // 49 // श्रीसिहसघके अनुयायी धर्मसिह मुनिके चरण कमलोमें भ्रमरके समान अनुरक्त रहनेवाले श्रीरत्नसिंह मुनिने भक्तामरस्तोत्रके चौथे चरणोंको लेकर यह श्रीनेमिचरित्र वर्णनात्मक काव्य बनाया / इति श्रीभक्तामरस्तुतिचतुर्थपदसमस्यानिबद्ध प्राणप्रिय नाम काव्य समाप्तम् /