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आधि व्याधि जैर मरणादिक जो, हो तो चित्र न यहाँ को अचरज है बुधजन भी तनुमें, अवलोकै थिरता जो ॥३९॥ सागैरान्त भूभोगी वांछित, लक्ष्मी जगमें पाई। पाये वे रमणीय विषय जो, सुर दुर्लभ है भाई ॥ पर पीछै आवेगी मृत्यू, तातै ते सब प्यारो। विमिश्रित भोजन सम धिग हैं, मुक्ति विचार जु सारो॥४० रणमें तब तक समरथ रथ गज,-अश्वः वीर गर्वी हैं। मंत्र पराक्रम खड्ग तभी तक, साधक कार्य सभी हैं। जब तक भूखा भक्षणइच्छुक, निर्दय काल जु मानो। कुपित होय नहिं दौड़े सन्मुखः तासु यत्र बुध ठानो ॥४१॥ राजा भी क्षणमें विधिवश कर, अवश रंक हो जावे । सर्व व्याधिसे रहित तरुण भी, शीघ्र नाशको पावै॥ दुर्बन्धनम्, सापायस्थितिदोषधातुमलवत्सर्वत्र यन्नश्वरम् । आधिव्याधिजरामृतिप्रभृतयो यच्चात्र चित्र न त, त्तचित्र स्थिरता बुधैरपि वपुष्यत्रापि यन्मृग्यते॥३९॥ लब्धा श्रीरिह वाछिता वसुमती भुक्ता समुद्रावधि , प्राप्तास्ते विषया मनोहरतरा स्वर्गेऽपि ये दुर्लभा । पश्चाचेन्मृतिरागमिष्यति ततस्तत्सर्वमेतद्विषा,-श्लिष्ट भोज्यमिवाति रम्यमपि धिग्मुक्ति पर मृग्यताम् ॥ ४०॥ युद्धे तावदल रथेभतुरगा वीराश्च दृप्ता भृशम्, मत्रा शौर्यमसिश्च ताव-. दतुला कार्यस्य ससाधका । राज्ञोऽपि क्षुधितोऽपि निर्दयमना यावनिघत्सुर्यमः, क्रुद्धो धावति नैव सन्मुखमितो यत्नो विधेयो बुधै ॥ ४१ ॥
मानसिक दुख | २ जरा बुढापा। ३ आश्चर्य। ४ समुद्रपर्यत पृथ्वी । ५ विष (जहर ) मिला हुआ। ६ तिसकालसे बचनेका उपाय ( मोक्षकी प्राप्तिका उपाय)।