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________________ (33) सुख आदि हैं, पुद्गल के गुण स्पर्श, रस, गन्ध, गुरुत्व, लघुत्व आदि है / धर्म का गुण जीव और पुद्गल की गति या उन के चलने में सहकारी होना है और अधर्म का गुण इन दोनों के ठहरने या रोकने में सहकारी होना है / देखो जब जीव और पुद्गल अपनी 2 शक्ति से चलते हैं तो धर्म ( अस्तिकाय ) उनके चलने में निमित्त कारण या अपेक्षाकारण है, जैसे घरके ऊपर कोई मनुष्य चढ़े, चढता तो अपने पांवों से है पर सीढ़ी या पौड़ी बिना नही चह सकता; जैसे मछली जल में तैरती तो अपनी शक्ति से है पर निमित्त कारण जल है, ऐसे ही जीव और पुद्गल की गति का सहायक धर्मास्तिकाय है / अधर्मास्तिकाय का स्वरूप भी धर्म की नाई है, पर भेद इतना है कि धर्म चलने में सहायक है और अधर्म रोकने में, जैसे ग्रीष्मकाल में जब कोई पथिक ( बटेऊ ) चलता 2 थक जाता है तब किसी वृक्ष की छाया में बैठता है, देखो बैठता तो वह आप ही है पर वृक्ष आदि के आश्रय बिन नही बैठता, ऐसेही जीव और पुद्गल ठहरते तो अपनी शक्तिसे हैं पर अधर्म उनके ठहरने मे सहाई है / काल का गुण बीतना और समय बिताना है और आकाश का गुण अपने आप को छोड़ कर अन्य पाचों द्रव्यों को तथा जीव और पुद्गल को रहने को स्थान देना है। धर्म, अधर्म, काल, आकाश ये चारों अजीव जैसे अभी बताया गया है, अमूर्तीक पदार्थ है और पुद्गल अजीव मूर्तीक है / ये पांचों जड़ पदार्थ है और इन सब में हिलने जुलने या जानने आ शु. 3
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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