________________ (25) भूः पर्यो निजभुजलता कन्दुकं खं वितानं दीपश्चन्द्रो विरतिवनितालब्धसङ्गप्रमोदः / दिकान्ताभिः पवनचमरैर्वाज्यमानः समन्ता भिक्षुः शेते नृप इव भुवि त्यक्तसर्वस्पृहोऽपि // इससे सिद्ध हुआ कि जो लोग क्रोधादि तजकर शान्तखभाव हो जाते है, दया भाव मनमें रखते है और रागद्वेष से रहित होकर आत्मज्ञान ध्यान और शुद्ध भावमे लीन रहते है, हे बड़े ही सुखी है। ध्याता। श्रीशुभचन्द्राचार्यजी कहते है कि ध्याता अर्थात् उत्तम ध्यान करनेवाले पुरुषमे आठ लक्षण होने चाहिये / ध्याता वही है (1) जो मोक्षकी इच्छा रखता हो ( मुमुक्षु ), (2) जो संसारसे विरक्त हो ( निर्माही, (3) जिसका चित्त शान्त हो (शान्त ), (4) जिसका मन अपने वशमे हो ( वशी), (5) जो शरीरके सागों. पांग आसनमें दृढ़ हो ( स्थिर ), (6) जिसने इन्द्रियोंको दमन कर लिया हो ( जितेन्द्रिय ), (7) धृति क्षमा मार्दव इत्यादि गुणों करके युक्त हो ( संवृत, ) (8) विपत् पड़ने या रोगग्रस्त होनेपर भी बराबर ध्यानमें लगा रहे (धीर) अब यह बताते है कि गृहस्थाश्रममे रहकर इस प्रकारका उत्तम ध्यान नहीं हो सकता अर्थात् गृहस्थोंको मोक्षपदवी नहीं प्राप्त हो सकती / मोक्ष और उत्तम ध्यानके अधिकारी केवल मुनिजन ही हैं जिन्होंने संसारके बन्धनको तोड़ दिया है और विषयभोगादिकी