________________ (23) इन चारों में से पहले तीनोंको नाश सहित और संसारके रोगों से दूषित समझकर परम पुरुषार्थ मोक्षके साधन में ही यत्न करते हैं। __ कर्मोका नष्ट होना और जन्ममरणसे रहित होकर आत्मसम्बन्धी चिदानन्दमयी पराकाष्ठा को प्राप्त करना मोक्ष का लक्षण कहा है / मोक्ष में इन्द्रियों और विषयोंके सुखसे कहीं बढ़कर सुख होता है / इन्द्रियों का सुख क्षणिक अन्तमें दुःखदायी होता है और मोक्षका सुख चिरस्थायी और सर्वदा आनन्दमयी होता है। मोक्ष में स्वाभाविक सुख मिलता है और यह ऐसा सुख है कि इसकी और किसी प्रकार के सुख से उपमा नहीं दे सकते / इस मोक्ष में आत्मा शरीररहित और शुद्ध होकर केवल ज्ञान-खरूप हो जाता है। धीर वीर पुरुष इस परमसुखरूप मोक्षकी प्राप्ति के लिये तप करते है और सारे ससार के झगड़ोंको छोडकर मुनिपद धारन करते है / मोक्षके साधन सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है / इन्हीमें ध्यान भी अनुगत है, इस लिये पहले ध्यान का उपदेश देते है। ध्यानके कारण मनुष्य संसार के दुःखों और पुनर्जन्म से छूट जाता है और ध्यान वा चित्तकी एकाग्रतासे ही मनुष्य सम्यग्ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पा लेता है / इस कारण ध्यान ही आत्मा के लिये परम उपयोगी और हितकारी है। ध्यान अवस्था वा चित्तकी एकाग्रता प्राप्त करने के अधिकारी होने के लिये यह अवश्य है कि हम मोह और परिग्रहोंको छोड़ दें, संसारके धंधोंमें बहुत लिप्त न होकर उनसे निकलने की इच्छा