________________ (21) 12 बोधिदुर्लभ भावना। __ सच पूछो तो पराधीन वस्तु का मिलना दुर्लभ है और स्वाधीन वस्तु का प्राप्त होना सुगम है / यह बोधि वा ज्ञान अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यगज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप तीन प्रकार का रत्नसमूह आत्मा का स्वभाव वा गुण है और इन तीनो का प्राप्त करना अपने वश मे है / इस लिए जब मनुष्य अपनी वास्तविक दशा को प्रतीत करे, तब वे तीनो वस्तु उसके अपने पास है और इस लिए इन का प्राप्त करना कठिन नही है / परन्तु जब तक आत्मा अपनी वास्तविक दशा को नहीं जानता, तब तक वह कर्मों के आधीन है। इस कारण अपना बोधि गुण प्रतीत करना कठिन है और अन्य सारे पदार्थ जो कर्मों के आधीन है, उन का जानना सुगम है। ___ इस का भावार्थ यह है कि प्रथम मनुष्य योनि में जन्म लेना ही दुर्लभ है, फिर इस जन्म मे यथार्थ ज्ञान अर्थात् बोधिका प्राप्त करना तो बहुत ही कठिन है / इस लिये जब यह यथार्थ ज्ञान प्राप्त हो जावे तो फिर इसे प्रमाद वा भूल से छोड़ना नही चाहिये / इससे आत्मा का सच्चा कल्याण करना चाहिये / आत्मध्यान और मोक्ष / पहले हम बारह भावनाओं का संक्षिप्त वर्णन कर चुके है / जो पुरुष इन बारह भावनाओंका अपने मनमें सदा चिन्तवन और मनन करते रहते है, वे संसारकी नाशवान् वस्तुओं में अनुरक्त