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हैं, तो उस का क्रोष करना उचित है और हमें उसे क्षमा ही नहीं करना चाहिये वरञ्च उसका कृतज्ञ होना चाहिये । और यदि ये दोष हम में नहीं है तब भी यह समझना चाहिये कि वह मनुष्य वृथा क्रोध करता है और अज्ञानता से क्रोधवश होता है इस कारण भी वह मनुष्य क्षमा के योग्य है । एक उर्दू भाषा के कवि ने सच कहा है:
तू भला है तो बुरा हो नहीं सक्ता ऐ जौक, है बुरा वह ही कि जो तुझको बुरा जानता है । और अगर तूही बुरा है तो वह सच कहता है,
क्यों बुरा कहने से उसके तू बुरा मानता है । उपरान्त इसके क्रोध के दोष और क्षमा के गुणों पर भी विचार करके क्षमा ही करनी चाहिये । और फिर तुलसीदासजी के, नीचे लिखे लेख पर भी विचार करके क्षमा हीका करना योग्य है।
कौन काहु को दुखसुखदाता।
निजकृत कर्मभोग सब भ्राता ॥ (२) मार्दव अर्थात् मृदुता और नम्रता। सबके साथ कोमलता और मृदुभाव से बर्तना और अपनी जाति, कुल, सौन्दर्य, धन, विद्या, ज्ञान, लाभ और शूरवीरता पर किसी प्रकार का अभिमान न करना।
(३) आनंव वा सरलता-हृदय में किसी प्रकार का कपट न रखना और विचार वचन और कार्य में ऋजुभाव और विशुद्धता का खीकार करना।
(४) शौच-लोभ का न होना । अर्थात् मन वचन और कार्य