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सारे संसार का इस से उद्धार होता है। धर्म के दश गुण है जो आगे वर्णन किये जाएंगे और जो मनुष्य इस धर्म के किसी एक गुण का भी पूरा २ पालन करते है उनका कल्याण हो जाता है ।
जिसने धर्म को प्राप्त कर लिया उसे सब कुछ मिल गया । उसे मानों चिन्तामणि वा कामधेनु वा कल्पवृक्ष मिल गया, वा ये तीनों वस्तुएं मिल गई, जिन से उसकी सारी मनोकामनाए पूरी हो सक्ती हैं और वह नौ निधि और बारह सिद्धियोंवाला हो चुका, अर्थात् ये सारी वस्तुएं और सम्पूर्ण ऋद्धि सिद्धि धर्म के आगे तुच्छ है और ये सब धर्म की किकर वा सेवक है ।
दुःख वा कष्ट के समय धर्म ही सहायक होता है और धर्म ही सुख का देनेवाला है । धर्मात्मा पुरुष को सब कुछ प्राप्त है और बडे २ राजा महाराजा और इन्द्रादिक देव इस के आगे सिर झुकाते है और नमते है ।
धर्म ही गुरु, धर्म ही मित्र, धर्म ही स्वामी, धर्म ही बन्धु, धर्म ही दीनों का नाथ और हितकारी है । धर्म ही निगोद स्थान और पाताल में गिरने से बचाता है और धर्म ही कल्याण और मोक्ष का दाता है । वस्तुत, धर्म मे अनन्त शक्ति है और उस की शक्ति का ठीक २ वर्णन नही हो सक्ता ।
धर्म में निम्नलिखित
दश गुण अनुगत है:
(१) क्षमा- यदि कोई मनुष्य हम में दोष निकाले और क्रोध करे और बुरा भला कहे तो प्रथम यह सोचना चाहिये कि ये दोष हम में उपस्थित है वा नही । यदि हम में ये दोष पाए जाते
आशु २
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