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(२३) अर्थ, ऐसें जो भयरहित होय समाधिमरणमैं उत्साहसहित चार आराधनानिकू आराधि मरण करे है ताकै स्वर्गलोक विना अन्य गति नहीं होय है खर्ग निमैं महर्द्धिक देव ही होय है ऐसा निश्चय है बहुरि स्वर्गमैं आयुका अंतपर्यंत महासुख भोगि करिके इस मनुष्यलोकविष पुण्यरूप निर्मल कुलमैं अनेक लोकनिकरि चिंतवन करते करते जन्म लेय अपने सेवकजन तथा कुटुंब परिवार मित्रादि जननिकू नानाप्रकारके वांछित धन भोगादिरूप फल देय अर पुण्यकरि उपजे भोगनिकू निरंतर भोगि आयु प्रमाण थोड़े काल पृथ्वीमंडलमैं संयमादिसहित वीतरागरूप भये तिष्ठ करके जैसे नृत्यके अखाड़ेमें नृत्य करनेवाला पुरुष लोकनिकै आनंद उपजाय निकल जाय है तैसें वह सत्पुरुष सकल लोकनिकै आनंद उपजाय खयमेव देह सागि निर्वाणकू प्राप्त होय है ॥ १८ ॥
दोहा। मृत्युमहोत्सव वचनिका, लिखी सदा सुखकाम । शुभआराधन मरण करि, पाऊं निज सुखधाम ॥१॥ उगणीसै ठारा शुकल, पंचमि मास अषाढ़ । पूरण लिखि बांचो सदा, मन धरि सम्यक गाढ़ ॥२॥
समाप्तोऽय ग्रन्थः ।