________________
(१३) जो हाय मेरा नाश भया फेरि खावना पीवना कहा हू नहीं है नहीं जानिये मरे पीछे कहा होयगा कैसे मरूंगा अब यह देखना मिलना कुटंबका समागम सब मेरे गया अब कौनका शरण ग्रहण करूं कैसे जीऊ ऐसे महा संक्लेशकरि मरें हैं अर जे आत्मज्ञानी हैं तिनकै मृत्यु आये ऐसा विचार उपजै है जो मैं देहरूप बंदीगृहमैं पराधीन पड़या हुवा इंद्रियनिक विषयनिकी चाहनाकी दाह करि अर मिले विषयनिकी अतृप्तिताकरि अर नित्य ही क्षुधा तृषा शीत उष्ण रोगनिकरि उपजी महा वेदना तिनकरि एक क्षण हूँ थिरता नहीं पाई महान दुःख पराधीनता अपमान घोर वेदना अनिष्टसंयोग इष्टवियोग भोगता महा संक्लेशतें काल व्यतीत किया अब ऐसे क्लेश छुड़ाय पराधीनतारहित मेरा अनंतसुखस्वरूप जन्ममरणरहित अविनाशी स्थानकू प्राप्त करनेवाला यह मरणका अवसर पाया है यो मरण महासुखको देनेवालो अत्यंत उपकारक है अर यो संसारवास केवल दुःखरूप है यामैं एक समाधिमरण ही शरण है और कहूं ठिकाना नहीं है इस विना च्यारों गतिनिमैं महा त्रास भोगी है अव संसारवासतें अति विरक्त मैं समाधिमरणका शरण ग्रहण करूं ॥१०॥ पुराधीशो यदा याति सुकृतस्य बुभुत्सया। तदासौ वार्यते केन प्रपञ्चैः पाञ्चभौतिकैः।