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अर्थ, जो जीव मृत्यु नाम कल्पवृक्षकू प्राप्त होते हू अपना कल्याण नहीं सिद्ध किया सो जीव संसाररूप कर्दममैं डूबा हुवा पाछै कहा करसी । भावार्थ,इस मनुष्य जन्ममैं मरणका संयोग है सो साक्षात कल्पवृक्ष है जो वांछित लेना है सो लेहु जो ज्ञानसहित अपना निजखभाव ग्रहणकरि आराधनासहित मरण करो तो खर्गका महर्द्धिकपणा तथा इंद्रपणा अहमिंद्रपणा पाय पाछै तीर्थकर तथा चक्रीपणा होय निर्वाण पावो । मरणसमान त्रैलोक्यमैं दाता नहीं ऐसे दाताकू पायकरि भी जो विषयकी वांछाकषायसहित ही रहोगे तो विषयवांछाका फल तो नरक निगोद है मरण नाम कल्पवृक्षकू बिगाड़ोगे नो ज्ञानादि अक्षयनिधानरहित भए संसाररूप कईममैं डूब जावोगे अर भो भव्य हो जो थे वांछाका मास्या हुवा खोटे नीच पुरुषनिका सेवन करो हो अतिलोभी भए विषयनिके भोगनेकुँ धन वास्तै हिंसा झूठ चोरी कुशील परिग्रहमैं आसक्त भये निंद्यकर्म करो हो अर वांछित पूर्ण हू नहीं होय अर दुःखके मारे मरण करो हो कुटंबादिकनिकू छांडि विदेशमैं परिभ्रमण करो हो निंद्य आचरण करो हो अर निंद्यकर्म करिकै हू अवश्य मरण करो हो अर जो एकबार हू समता धारणकरि त्यागवतसहित मरण करो