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( ७ )
समान देह मैंतें मरण नाम बलवान राजा बिना कौन निकासै इस देहकूं कहाँ ताई बहता जाकूं नित्य उठावना बैठावना भोजन करावना जलपावना ज्ञान करावना निद्रा लिवावना कामादिक विषयसाधन करावना नानाप्रकारके वस्त्र आभरणादिकरि भूषित करना रात्रि दिन इस देहहीका दासपना करता हूं आत्माकूं नाना त्रास देवै है भयभीत करै है आपा भुलावे है ऐसा कृतघ्न देहतैं निकसना मृत्यु नाम राजा बिना नहीं होय जो ज्ञानसहित देहसों ममता छांड़ि सावधानीतैं धर्मध्यानसहित संक्लेशरहित वीतरागतापूर्वक जो समाधिमृत्यु नाम राजाका सहाय ग्रहण करूं तो फेरि मेरा आत्मा देह धारण ही नहीं करे दुःखनिका मात्र नहीं होय समाधिमरण नामा बड़ा न्यायमार्गी राजा है मोकूं याहीका शरण होहू मेरे अपमृत्युका नाश होहू ॥ ५ ॥ और हू कहें हैंसर्वदुःखप्रदं पिण्डं दूरीकृत्यात्मदर्शिभिः । मृत्यु मित्रप्रसादेन प्राप्यन्ते सुखसम्पदः ॥
अर्थ - आत्मदर्शी जे आत्मज्ञानी हैं ते मृत्युनाम मित्रका प्रसादकर सर्व दुःखका देनेवाला देहपिंडकं दूर छोड़कर सुखकी संपदाकूं प्राप्त होय हैं। भावार्थजो इस संसधातुमय महा अशुचि विनाशीक देहकूं