________________
(६) मरणका भय अर देह कुटुंब परिग्रहका ममत्वकरि चिंतामणि कल्पवृक्ष समान समाधिमरण• बिगाडि भयसहित ममतावान हुवा कुमरणकरि दुर्गति जावना उचित नहीं ॥ ४ ॥ और हू विचार हैआगर्भाहुःखसंतप्तः प्रक्षिप्तो देहपञ्जरे। नात्मा विमुच्यतेऽन्येन मृत्युभूमिपतिं विना॥ ___ अर्थ-यो हमारो कर्म नाम बैरी मेरा आत्माकू देहरूप पींजरेमैं क्षेप्या सो गर्भमैं आया तिस क्षणमैं सदाकाल क्षुधा तृषा रोग वियोग इत्यादि अनेक दुःखनिकरि तप्तायमान हुवा पड़या हूं अब ऐसे अनेक दुःखनिकरि व्याप्त इस देहरूप पीजरातैं मोकू मृत्यु नाम राजा विना कोन छुड़ावै । भावार्थ-इस देहरूप पीजरेमैं कर्मरूप शत्रुकरि पटक्या मैं इंद्रियनिक आधीन हुवा नाना त्रास सहूं हूं नित्य ही क्षुधा अर तृषाकी वेदना त्रास देवै है अर सासती स्वास उच्छासकी पवनका खेंचना अर काढ़ना अर नानाप्रकारके रोगनिका भोगना अर उदर भरनै वास्तै नाना पराधीनता अर सेवा कृषि वाणिज्यादिकनिकरि महा क्लेशित होय रहना अर शीत उष्ण दुष्टनि करि ताड़न मारन कुवचन अपमान सहना कुटुंबके आधीन होना धनकै राजाकै स्त्री पुत्रादिककै आधीन रहना ऐसा महान् बंदीगृह