________________
नमः श्रीपरमात्मने ।
स्वर्गीय पंडित सदासुखजीकृत वचनिका सहित
मृत्युमहोत्सव |
श्लोक |
मृत्युमार्गे प्रवृत्तस्य वीतरागो ददातु मे । समाधिबोध पाथेयं यावन्मुक्तिपुरी पुरः ॥
अर्थ - मृत्युके मार्ग मैं प्रवर्त्यो जो मैं ताकूं भगवान वीतराग जो है सो समाधि कहिये स्वरूपकी सावधानी अर बोध कहिये रत्नत्रयका लाभ सोही जो पाथेय कहिये परलोकके मार्ग मैं उपकारक वस्तु सो देहु जितनैकमैं मुक्ति पुरी प्रति जाय पहुंचूं या प्रार्थना करूं हूं । भावार्थ — मैं अनादिकालतें अनंत कुमरण किये जिनकूं सर्वज्ञ वीतराग ही जानें हैं एकबार हु सम्यक् मरण नहीं किया जो सम्यकुमरण करता तो फिर संसार मैं मरणका पात्र नहीं होता जातैं जहां देह मर जाय अर आत्माका सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र स्वभाव है सो विषय कषायनिकर नहीं घात्या जाय सो सम्यक्मरण है अर मिध्याश्रद्धानरूप हुवा देहका नाशकूं ही अपना